शराब ठेके नीलामी के दौरान सस्ती दारू में जनता बेहोश,आचार संहिता की धज्जियां उड़ी
सत्य नारायण सेन
प्रखर न्यूज व्यूज एक्सप्रेस शाजापुर
शाजापुर,मामला दरअसल मध्य प्रदेश के शाजापुर जिले का है। मार्च माह की अंतिम दिनांक में कई लोग शराब के नशे में सड़क पर बेहोश हालत में तथा एक महिला नेशनल हाईवे पर भी शराब में धुत्त पड़ी मिली।यह सीन आप शाजापुर के बस स्टैंड के शराब ठेके का देख रहे हैं जो की रामवीर सिकरवार व उनके सहयोगी पार्टनर के द्वारा यहां पर ठेका वर्षों से संचालित किया जा रहा है। किंतु अब शराब ठेके भोपाल की कंपनी द्वारा संचालित किए जाएंगे।शाजापुर जिले के अधिकांश ठेकों पर बारिश होने के बाद भी लावारिस जैसे पड़े लोग ऐसे भारत की कल्पना कभी नहीं की थी सरकार ने
*मामला 31 मार्च 2024 का है*
घटना दरअसल शराब पीकर रोड पर बेहोश हालत में ठेके के सामने ही युवक जो लेटा हुआ है। इस बात का संकेत है कि आने वाले समय में प्रशासन ऐसे मामलों में क्यों बोना बना रहता है। एक तरफ आबकारी अपनी कार्रवाइयों में लिप्त है ।वहीं दूसरी ओर शहर में ऐसी हालत में लोग शराब के हालत में बेहोश हालत में पड़े मिले आबकारी विभाग केवल आचार संहिता लोकसभा चुनाव को मद्देनजर रखते हुए केवल फॉर्मेलिटी निभाने में लगी हुई है वही इस तरीके के नियम को तोड़ने वाले लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।अभी लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण में देश की जनता का तो भगवान ही रखवाला है। हमारे द्वारा खबरों के द्वारा पहले भी आबकारी विभाग में जो सांप की तरह कुंडली मार कर बैठे अधिकारियों को कई बार सचेत कर दिया गया है ।लेकिन वह अपने बंद कमरे की चार दिवारीयों से उठकर शहर में जरा बाहर जाकर देखते ही नहीं है। केवल कंजरों के कच्ची शराब के ठेकों पर ही की दबीश देने पर विश्वास रखते हैं । धरातल की मूल बातों से कोसों दूर है। जिला आबकारी विभाग का इस तरह का खेल मध्य प्रदेश शासन के द्वारा देखा भी जा रहा है। वर्तमान सरकार ने बड़ा एक्शन तो लिया लेकिन वास्तविकता कुछ और ही नजर आ रही है। शाजापुर का यह एक फोटो तो केवल उदाहरण मात्र है। मध्य प्रदेश में हर दिन शराब के कारण कई महिलाएं अपने घरों में परेशान हैं। इस तरीके से तो शिवराज सरकार ना तो भांजा बचा पाई ना ही भांजियां। आज के वर्तमान दौर में महिलाएं भी शराब के ठेकों की आदी हो गई हैं। कई बार अख़बारों की सुर्खियों में इस तरह की खबर इलेक्ट्रॉनिक प्रिंट मीडिया में लग चुकी हैं। और ख़बरें पढ़ने में देखने में आती रहती है। लेकिन ऐसे मामलों में राजनीतिक दल भी खामोश है वहीं प्रशासन भी चुपी साधे बैठा है।