अनुसूचित जाति के महान क्रांतिकारी शहीदों के साथ भेदभाव क्यों*? *वीर मनीराम अहिरवार जी को अभी तक कोई सम्मान नही

लेखक : पटेल रामदास मंडराई नई दिल्ली 
 

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 देश मे अंग्रेजों से मिली  आजादी का 78 वां जश्न पूरे देश मे मनाया जा रहा  है l            देश की आजाद मे क्या चंद शहीदों  को ही बढ़ चढ़ ,श्रेय देना चाहिए ? क्या और इसके हकदार नहीं है ? देश की आजादी के और भी  दीवाने  है। जिन्होंने बढ़ चढ़ कर देश को आजाद कराने मे अपनी कुर्बानी  दी ऐसे शहीदों को भी इतिहास मे स्थान देने पर क्या और शहीदों का सम्मान कम हो जायेगा ?

                                                                      1857 की क्रांति को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम कहा जाता है  l        जबकि 1780 मे बिहार के  अछूत तिलका मांझी ने अपनी समाज के साथ मिलकर आजादी का बिगुल बजा दिया था, उन्होंने  सरकारी खजाना लूटकर बाढ़ पीड़ितों मे बाँटा गवर्नर सहित सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारकर रामगढ़ कैंप और राजमहल को छिना, तब धोके से अंग्रेजों ने पकड़कर उनको फांसी पर लटकाया l                                                                                                          


1804 मे उदइयाँ चमार ने अलीगढ़ के नवाब के साथ मिलकर सैकड़ों अंग्रेजों को मौत के घाट उतारा l  

                    1804 मे  ही मातादीन भंगी ने मंगल पांडे को कहा कि सवर्णो  के घड़े से अछूतों के पानी पीने से तुम्हारा धर्म भ्रष्ट होता है तो फिर अंग्रेजों द्वारा  कारतूस मे सूअर की चर्बी मिलाने से सवर्णो का धर्म भ्रष्ट नहीं होता? इससे सभी सैनिकों मे क्रांति की ज्वाला जागी l जौनपुर के बांके चमार ने हजारों अंग्रेजों को मौत के घाट उतार दिया, जिससे अंग्रेज थर थर काँपते थे, बांके चमार को पकड़ने के लिए ₹50,000/= रूपये इनाम रखा था l    

                         वीरांगना झलकारी बाई कोली, बिरसा मुंडा,  माध्यप्रदेश स्थित चीचली नगर, गाडरवारा जिला नरसिंहपुर  के वीर मनीराम ने गोंडवाना राज्य  के राजा विहीन राज्य को अंग्रेजों  से बचाने मे लिए वीरता पूर्वक लडे़। जिनके युद्ध के एक पुरुष व एक महिला की युद्ध स्थल पर ही वीरगति हुई।अंग्रेजों को युद्ध में परास्त कर लहूलुहान कर गांव से खदेड़ कर विजय प्राप्त की। जिन्हें अंग्रेजों ने धोके  से वीर मनीराम अहिरवार को पकड़कर जिन्दा जमीन मे गाड़ दिया गया l ऐसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और महान क्रांतिकारी शहीद को सम्मान से उपेक्षित रखना अनुसूचित जाति वर्ग के महापुरुष की अनदेखी ही नहीं घोर अन्याय है। आजादी के अमृत महोत्सव में नाम उजागर होने के बाद भी कोई सम्मान न देना सरासर अनुचित है। 


लखनऊ की उदा देवी,महाबिरी बाल्मीकि, बल्लू मेहतर, आदि अनेक अछूत 1780 से 1947 तक देश को आजाद कराने मे फांसी पर चढ़े, गोलियों से मारे गये जिन्दा दफन हुए लेकिन अफ़सोस अछूत बलिदानियों का इतिहास मे नाम मात्र को भी प्रमुखता से नहीं दर्शाया गया, उनको शहीद का दर्जा नहीं दिया गया। उनको इतिहास के पंन्नों  मे जगह नहीं मिली l केवल लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, सुखदेव सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर आजाद आदि को ही प्रमुखता से दर्शया गया है l और अछूत शहीदों को गुमनामी के अँधेरे मे धकेल दिया गया, उनको शहीदों का दर्जा नहीं मिला                                          क्या यह उचित है ? सम्पूर्ण बिरादरी के सामाजिक संगठनों द्वारा लगातार सम्मान की आवाज उठ रही है। जो कभी भी दबने वाली नहीं है, मध्यप्रदेश में अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी को लेकर वहां के सामाजिक संगठनों के द्वारा सम्मान की जो आवाज उठी है। जिसका दिल्ली में निवास कर रहे लाखों सामाजिक नागरिकों का समर्थन कर मांग की जाती है कि वीर मनीराम अहिरवार जी की जन्मभूमि पर मूर्ति लगाकर, विशाल सामाजिक प्ररेणा केन्द्र बहुमंजिला निर्मित कर शहीद का सम्मान कर समूची कौम को गौरवान्वित किया जाये।


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