ये चमक,,, ये धमक,,, सब उधारी से है,,, उधार लो और घी पीओ


 

अजय राज केवट माही

 प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस भोपाल मध्यप्रदेश

भोपाल। कर्ज के बोझ से दबी मध्य प्रदेश सरकार एक माह में दूसरी बार कर्ज ले रही है। इसके लिए वित्तीय संस्थानों से ऑफर बुलाए हैं खुले बाजार से 5 हजार करोड़ का कर्ज दो किस्तों में 2500-2500 करोड रुपए 14 और 21 साल के लिए लिया गया

है। सरकार ने इससे पहले 6 अगस्त को भी 5 हजार करोड रुपए का ऋण लिया था। सरकार ने 2023-24 में भी 44 हजार करोड रुपए का कर्ज लिया था। कुल मिलाकर कर्ज का बोझ मध्य प्रदेश सरकार पर लगातार बढ़ता ही जा रहा है और एक वर्ष के बजट से

अधिक का कर्ज मध्य प्रदेश पर हो चुका है। लेकिन बावजूद

इसके सरकार की ओर से मितव्ययीता संबंधी कोई कदम नहीं

उठाए जा रहे हैं। हमारे पूर्वज कहते आए हैं कि, कर्ज और मर्ज को

कभी छोटा नहीं समझना चाहिए।

कर्ज यानी ऋऋटा और मर्ज यानी बीमारी दोनों को ही छोटा समझने की भूल नहीं करना चाहिए। बीमारी छोटी होने पर ही तत्काल इलाज किया जाना चाहिए, इसी प्रकार ही छोटा कर्ज भी घातक साबित हो सकता है इसीलिए कर्ज लेने से बचना चाहिए लेकिन पिछले कुछ वर्षों में कर्ज लेना फैशन सा बन गया है। बाजार में कई प्रकार की लोन सुविधा के बीच एक नई कर्ज योजना भी आई है जिसमें महंगे अस्पतालों में बीमारी के इलाज के लिए भी लोन सुविधा उपलब्ध कराए जाने लगी है। एजुकेशन, कार, होम लोन के बाद अब इलाज के लिए भी लोन...।

सरकार द्वारा जनवरी 2023 से अब तक लिया कर्ज

सरकार ने जनवरी 2023 में 2000करोड़, 2 फरवरी 2023 को 3000 करोड़, 9 फरवरी 23 को 3000 करोड़, 16 फरवरी 3000 करोड़, 23 फरवरी 3000 करोड़, 2 मार्च 3000 करोड़, 9 मार्च 2000

करोड़, 17 मार्च 4000 करोड़, 24 मार्च 1000 करोड़, 29 मई 2000 करोड़, 14 जून 4000 करोड़, 12 सितंबर 1000 करोड़, 27 दिसंबर 2000 करोड़, 23 जनवरी 2024 2500 करोड़, 7 फरवरी 3000 करोड़, 22 मार्च 5000 करोड़ और 7 अगस्त 5000 करोड रुपए का ऋण लिया है। मोहन यादव सरकार बनने तक 3.5 लाख करोड रुपए कर्ज था जो सरकार बनने के बाद लगातार बढ़ता जा रहा है। जनवरी 24 से 31 मार्च 24 तक सिर्फ तीन महीने में ही सरकार ने लगभग 41 प्रतिशत यानी 17500 करोड़ रुपये कर्ज लिया है।

इन पर सबसे ज्यादा खर्च

सरकार बनाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाली लाडली बहना योजना सरकार के लिए अब सबसे महंगी साबित हो रही है। करीब 1 करोड़ 30 लाख महिलाओं को प्रतिमाह 1250 रुपए की राशि दी जाने वाली इस योजना पर सरकार हर साल करीब 16 हजार करोड रुपए खर्च कर रही है। वहीं अन्य मुफ्त रेवड़ी योजना में 100 रुपये 100 यूनिट तक में 5500 करोड रुपए, कृषि यंत्रों पर सब्सिडी योजना पर प्रतिवर्ष 17 हजार करोड़ और 450 रुपए में गैस सिलेंडर देने में लगभग 1 हजार करोड रुपए सालाना खर्च होते हैं। नतीजन कर्ज का भार दिनो दिन आम जनता पर ही बढ़ रहा है। अनुमान के मुताबिक 2025 तक मध्य प्रदेश के प्रत्येक नागरिक पर लगभग 50 हजार रुपये का कर्ज हो जाएगा।

मितव्ययीता आवश्यक

राजनीतिक दलों द्वारा लोकलुभावनी घोषणा करना आम बात है और वादे कराना आसान है पर उन्हें निभाना मुश्किल है। मुख्य दोनों ही दल सरकार बनाने के लिए बड़े-बड़े दावे व वादे करते रहे हैं। गत वर्ष विधानसभा चुनाव में भी बड़े-बड़े वादे किए गए थे। सरकार बनाने के बाद भाजपा के लिए इन वादों को पूरा करना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है। नतीजा यह है कि, सरकार कर्ज पर कर्ज लिए ही जा रही है और इनके कर्ज के बोझ तले दबने के बावजूद सरकार की ओर से फिजूल खर्ची रोकने या मितव्ययीता संबंधी कोई कार्य नजर नहीं आ रहा है। सरकार के मंत्री वाहनों और बंगलो पर जनता के टैक्स रूपी गाड़ी कमाई दिल खोलकर खर्च कर रहे हैं। अब समय की मांग है कि, सरकार अपने खर्चों पर भी नियंत्रित करें और देश के प्रधानमंत्री जो अपने आप को प्रधान सेवक कहते हैं उन्हीं की पार्टी के विधायक और सांसद के साथ ही अन्य जनप्रतिनिधि जनता के टैक्स को मितव्ययिता के साथ खर्च करें। क्योंकि कर्ज लेकर घी पीना तो आसान है लेकिन असली मजा तो खुद कमाकर खर्च करने में है।

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