मध्यप्रदेश बीजेपी में कलह-कलेश : शिवराज, कैलाश और मोहन यादव की अंदरूनी जंग सड़कों पर आई

मुख्यमंत्री मोहन यादव, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय के बीच चल रही अंदरूनी लड़ाई ने पार्टी को गहरे संकट में झोंक दिया

मध्यप्रदेश बीजेपी में कलह-कलेश : शिवराज, कैलाश और मोहन यादव की अंदरूनी जंग सड़कों पर आई

मोहन यादव ने अपने करीबी हेमंत खंडेलवाल को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर शिवराज और कैलाश के खेमे में भूचाल ला दिया

मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) अब सत्ता और प्रभाव की खुली जंग का मैदान बन चुकी है।मुख्यमंत्री मोहन यादव, पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और दिग्गज नेता कैलाश विजयवर्गीय के बीच चल रही अंदरूनी लड़ाई ने पार्टी को गहरे संकट में झोंक दिया है। यह गुटबाजी नहीं, बल्कि एक-दूसरे को राजनीतिक रूप से नेस्तनाबूद करने की खतरनाक साजिश का नंगा नाच है। बीजेपी का कथित “एकजुट” चेहरा अब पूरी तरह तार-तार हो चुका है, और मध्यप्रदेश की जनता इस घिनौने खेल को हतप्रभ होकर देख रही है।

केन्द्रीय नेतृत्व की भूल: मोहन यादव को सौंपा सिंहासन

बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व ने मोहन यादव जैसे अनुभवहीन और अपरिपक्व नेता को मध्यप्रदेश की कमान सौंपकर एक ऐसी गलती की, जिसने पार्टी को आज इस मुकाम पर ला खड़ा किया है। यह कदम शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय जैसे दिग्गजों के पर कुतरने की सुनियोजित चाल थी। आलाकमान शायद यह सोच रहा था कि मोहन यादव को आगे करके वह इन दो कद्दावर नेताओं के प्रभाव को कम कर देगा। लेकिन यह दांव उलटा पड़ गया। मोहन यादव, शिवराज और कैलाश की आपसी जंग ने अब पूरी बीजेपी को संकट के मुहाने पर ला खड़ा किया है।

शिवराज-कैलाश की साजिश: मोहन यादव को सत्ता से बेदखल करने की चाल

शिवराज सिंह चौहान और कैलाश विजयवर्गीय, जिनका मध्यप्रदेश की सियासत में गहरा प्रभाव रहा है, मोहन यादव की बचकानी राजनीति को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे। खबरें हैं कि दोनों ने इंदौर में गुप्त मुलाकात कर मोहन यादव को सत्ता से हटाने की रणनीति बनाई। यह कोई दोस्ताना मुलाकात नहीं थी; यह एक खतरनाक चाल थी, जिसका मकसद मोहन यादव को कुर्सी से धक्का देना और वापस से सरकार हथियाना था। लेकिन इस साजिश ने न सिर्फ पार्टी के भीतर तनाव बढ़ाया, बल्कि कार्यकर्ताओं और जनता के बीच भी बीजेपी की साख को चोट पहुंचाई।

मोहन यादव का पलटवार: हेमंत खंडेलवाल के जरिए तख्तापलट

मोहन यादव ने अपने करीबी हेमंत खंडेलवाल को बीजेपी प्रदेशाध्यक्ष बनवाकर शिवराज और कैलाश के खेमे में भूचाल ला दिया। यह कदम उनके विरोधियों को कमजोर करने की कोशिश थी, लेकिन इसने कैलाश विजयवर्गीय को इस कदर भड़काया कि उन्होंने कथित तौर पर हेमंत खंडेलवाल के खिलाफ “मुर्दाबाद” जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया। लेकिन मोहन यादव का यह दांव भी बीजेपी के लिए एकता का नहीं, बल्कि और बिखराव का सबब बन रहा है।

कैलाश विजयवर्गीय की गुमनामी : इंदौर से गायब, प्रभाव से बाहर?

इंदौर, जो कभी कैलाश विजयवर्गीय का अभेद्य किला था, अब उनके लिए पराया होता जा रहा है। सरकारी विज्ञापनों और होर्डिंग्स से उनकी तस्वीरें गायब हो चुकी हैं। यहां तक कि उनके अपने विभाग—नगरीय विकास और आवास—के विज्ञापनों में भी उनकी फोटो को जगह नहीं मिल रही। यह क्या संकेत देता है? कि कैलाश को जानबूझकर हाशिए पर धकेला जा रहा है। लेकिन सवाल यह है कि क्या कैलाश विजयवर्गीय, जो खुद को मध्यप्रदेश का “बॉस” मानते हैं, इस अपमान को चुपचाप सहन करेंगे? उनकी चुप्पी एक तूफान का संकेत है, जो बीजेपी को और नुकसान पहुंचा सकता है।

बीजेपी आलाकमान की चुप्पी: संकट को न्योता

सबसे बड़ा सवाल यह है कि बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व इस जंगलराज पर चुप क्यों है? क्या आलाकमान इस गुटबाजी को जानबूझकर नजरअंदाज कर रहा है, ताकि सभी नेता एक-दूसरे को कमजोर करें और दिल्ली की पकड़ मजबूत रहे? या फिर यह उनकी नाकामी है, जो मध्यप्रदेश जैसे मजबूत गढ़ को संकट में डाल रही है? यह रणनीति, अगर सचमुच कोई रणनीति है, तो बीजेपी को भारी पड़ने वाली है। आलाकमान की चुप्पी इस आग को और भड़का रही है।

जनता का सवाल: विकास कौन करेगा? मध्यप्रदेश की जनता अब गुस्से में है। वह सवाल पूछ रही है—जब बीजेपी के नेता आपस में ही सत्ता की चूहे-बिल्ली की लड़ाई लड़ रहे हैं, तो प्रदेश का विकास कौन करेगा? इस जंग में बेरोजगारी, महंगाई, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मुद्दे कहीं गुम हो चुके हैं।*