वैश्वीकरण के बदलते समीकरण – विश्वासघात की त्रासदी और भारत की नई राह:  चम्पालाल बोथरा

खंडित वैश्वीकरण के दौर में भारत की आत्मनिर्भरता की नई दिशा

वैश्वीकरण के बदलते समीकरण – विश्वासघात की त्रासदी और भारत की नई राह:  चम्पालाल बोथरा

विश्वासघात से खंडित हुआ वैश्वीकरण, भारत के सामने आत्मनिर्भरता और नेतृत्व की नई चुनौती

सूरत,1990 के दशक में जब दुनिया ने वैश्वीकरण (Globalization) का सपना देखा था, तब यह उम्मीद की एक किरण थी। विश्व व्यापार संगठन (WTO) और मुक्त व्यापार समझौतों के माध्यम से हम एक ऐसी दुनिया की कल्पना कर रहे थे जहाँ सीमाओं के बंधन टूटेंगे, व्यापार बढ़ेगा, और हर किसी को सस्ते व बेहतर सामान मिलेंगे। यह एक स्वर्णिम युग की शुरुआत मानी गई थी, जहाँ प्रतिस्पर्धा के नियमों से सभी को फायदा होने की उम्मीद थी। पर बीते तीन दशकों में यह सपना बिखरता दिख रहा है। अब वैश्वीकरण की चमक फीकी पड़ चुकी है और इसकी जगह ‘खंडित वैश्वीकरण’ (Fragmented Globalization) की एक नई, अनिश्चित तस्वीर उभर रही है।
*वैश्वीकरण का सफर: वादे और विश्वासघात*
1990 से 2000 तक, यह दौर उम्मीदों से भरा था। सोवियत संघ के पतन के बाद पूंजीवाद और मुक्त बाज़ार ने पूरी दुनिया में अपनी जड़ें जमाईं। 1995 में WTO की स्थापना हुई और चीन व भारत जैसे विशाल बाज़ार भी वैश्विक व्यापार का हिस्सा बने। इंटरनेट और तकनीक ने इस प्रक्रिया को और तेज़ किया।
लेकिन 2001 में चीन के WTO में शामिल होने के बाद समीकरण बदल गए। चीन, अपनी विशाल उत्पादन क्षमता और सरकारी सब्सिडी की मदद से "दुनिया की फैक्ट्री" बन गया। इससे पश्चिमी देशों में रोज़गार का नुकसान हुआ, जबकि चीन ने भारी व्यापार अधिशेष (trade surplus) कमाया। 2008 की वैश्विक मंदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि वैश्वीकरण ने दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं को किस कदर एक-दूसरे पर निर्भर बना दिया है। एक देश की समस्या अब वैश्विक समस्या बन गई थी।

नियम  का उलंधन किसने किया
जब सबसे ताकतवर देशों ने ही अनुशासन का उल्लंघन किया
वैश्वीकरण के पतन का सबसे बड़ा कारण यह है कि जिन देशों ने इसके नियम बनाए, उन्होंने ही सबसे पहले इन नियमों को तोड़ा।
 * अमेरिका: WTO का सबसे बड़ा समर्थक होते हुए भी, 2018 में डोनाल्ड ट्रंप ने चीन पर 25% तक टैरिफ लगाकर MFN (Most Favoured Nation) नियम का उल्लंघन किया। यह वैश्वीकरण के नियमों को तोड़ने का एक बड़ा संकेत था। और आज 2025 में 
सभी देशो पे कम से कम 10% टैरिफ
   •   कुछ देश: 24–50% तक विशेष अतिरिक्त टैरिफ
   •   भारत: 25% + 25% (कर के कारण) = कुल 50% टैरिफ के निर्णय थोपना एक मनमानी का निर्णय वैश्वीकरण को तोड़ने वाला है ।
 * चीन: चीन पर लंबे समय से डंपिंग (कम दाम पर सामान बेचना), भारी सब्सिडी देना और बौद्धिक संपदा (Intellectual Property) की चोरी करने के आरोप लगते रहे हैं। चीन ने इन अनैतिक तरीकों से वैश्विक बाज़ार में अपनी पकड़ मज़बूत की।
 * यूरोपीय संघ: पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन के नाम पर नए व्यापारिक अवरोध (trade barriers) खड़े किए, जिससे विकासशील देशों के लिए अपने उत्पाद बेचना और मुश्किल हो गया।
इस प्रवृत्ति को कोविड-19 महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध ने और भी तेज़ कर दिया। महामारी के दौरान देशों ने मेडिकल उपकरणों, वैक्सीन और अनाज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाए, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला (Global Supply Chain) बुरी तरह चरमरा गई। यह सब दर्शाता है कि जब-जब संकट आया, हर देश ने "पहले मैं" की नीति अपनाई, और वैश्वीकरण के नियमों को ताक पर रख दिया।

वैश्वीकरण के विश्वासघात का परिणाम
आज हम जिस खंडित वैश्वीकरण को देख रहे हैं, उसका सीधा असर हमारे जीवन पर पड़ रहा है:
 * महंगाई: टैरिफ और व्यापारिक अवरोधों के कारण उपभोक्ताओं को सामान महंगे मिल रहे हैं।
 * अस्थिर आपूर्ति श्रृंखला: एक विश्वसनीय और निर्बाध सप्लाई चेन की जगह अब अस्थिर और जोखिम भरी व्यवस्था बन गई है।
 * WTO का कमज़ोर होना: दुनिया के सबसे ताकतवर देशों द्वारा नियमों का उल्लंघन करने से WTO की विश्वसनीयता खत्म हो गई है।
*भारत के लिए आगे की राह*
: आत्मनिर्भरता और रणनीतिक नेतृत्व
इस अनिश्चितता भरे माहौल में भारत के लिए एक ऐतिहासिक अवसर छिपा है। भारत की 142 करोड़ से अधिक की जनसंख्या और हर साल 1.2 करोड़ नए रोज़गार की ज़रूरत हमें अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित करती है। हमारा रास्ता वैश्वीकरण की पुरानी परिभाषा पर आधारित नहीं हो सकता। हमें एक नई सोच के साथ आगे बढ़ना होगा:
 उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनें
"China+1" रणनीति के तहत हमें दुनिया के लिए मैन्युफैक्चरिंग हब बनना होगा। हमारी कुशल श्रम शक्ति, विशाल घरेलू बाज़ार और स्थिर राजनीतिक माहौल विदेशी निवेश के लिए सबसे बड़ा आकर्षण हैं।
 * घरेलू बाज़ार की शक्ति का लाभ उठाएं: हमें अपने विशाल उपभोक्ता आधार का लाभ उठाकर घरेलू उद्योगों को बढ़ावा देना होगा। 'लोकल फॉर वोकल' की नीति को और मजबूत करने की ज़रूरत है।
 * सेवा क्षेत्र में नेतृत्व: भारत का IT और डिजिटल सेवा क्षेत्र पहले से ही दुनिया में एक मिसाल है। हमें इसे शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य क्षेत्रों में भी विस्तारित करना होगा, जिससे सेवा क्षेत्र का निर्यात और बढ़े।
 * रणनीतिक आत्मनिर्भरता: चिप्स (Semiconductors), ऊर्जा, रक्षा और दवाओं जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। यह हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता के लिए अनिवार्य है।

 मित्र देशों के साथ समझौते

 EU,जापान, ऑस्ट्रेलिया , जैसे मित्र देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौतों (FTAs) को तेज़ी से अंतिम रूप देना होगा, ताकि हम अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रख सकें।
चम्पालाल बोथरा 
टेक्सटाइल & गारमेंट कमेटी कैट ने कहा कि एक व्यापारिक संगठन के रूप में हमारा मानना है कि स्थिर, निष्पक्ष और पारदर्शी वैश्विक व्यापार ही सबके हित में है। वैश्वीकरण के नियमों को तोड़ना उस ट्रैफिक सिग्नल को तोड़ने जैसा है जहाँ एक बड़ी गाड़ी यह कह कर निकल जाए, “यह नियम मेरे लिए नहीं हैं।”
आज वैश्वीकरण के प्रति भरोसे का संकट इसलिए गहराया है, क्योंकि नियम बनाने वालों ने ही इन्हें तोड़ा है। भारत को इस समय आर्थिक नेतृत्व और रणनीतिक आत्मनिर्भरता – दोनों को एक साथ लेकर चलना होगा। हमें एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना है जहाँ नियम सबके लिए समान हों, और व्यापार भरोसे पर आधारित हो, न कि ताकत के अहंकार पर।