विदेशी सस्ते कपड़ो के बढ़ते आयात और ऊँची GST दर से घरेलू कपड़ा उद्योग की प्रतिस्पर्धा घट रही है— नीति समन्वय की तत्काल आवश्यकता : चम्पालाल बोथरा
विदेशी सस्ते कपड़ों के आयात और ऊँची GST दर से घरेलू कपड़ा उद्योग पर संकट – नीति समन्वय की आवश्यकता चम्पालाल बोथरा, राष्ट्रीय चेयरमैन – टेक्सटाइल एवं गारमेंट कमेटी (CAIT)
विदेशी सस्ते कपड़ों के बढ़ते आयात और ऊँची GST दर से घरेलू कपड़ा उद्योग पर संकट, CAIT ने नीति सुधार की माँग की
सूरत,भारतीय टेक्सटाइल और गारमेंट उद्योग, जो देश के सबसे बड़े रोजगार सृजक और निर्यात समर्थक क्षेत्रों में से एक है, वर्तमान में दोहरी चुनौती का सामना कर रहा है
एक ओर विदेशी सस्ते फैब्रिक और रेडीमेड परिधानों का आयात तेजी से बढ़ रहा है, और दूसरी ओर घरेलू उत्पादन पर ऊँची GST दरों का प्रभाव उसकी प्रतिस्पर्धा क्षमता को सीमित कर रहा है।

वर्तमान स्थिति
हाल के महीनों में चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, थाईलैंड, श्रीलंका और तुर्की से आयातित वूवन व निटेड फैब्रिक, रेडीमेड गारमेंट्स तथा डिजाइनर कपड़ों का भारतीय बाजार में तेज़ी से प्रसार हुआ है।
इन आयातित कपड़ों की कम कीमत और उपलब्धता ने सूरत, तिरुपुर, लुधियाना, नोएडा ,अहमदाबाद , मुंबई और कोलकाता जैसे घरेलू उत्पादन केंद्रों को सीधी प्रतिस्पर्धा में ला खड़ा किया है।
साथ ही, ₹2,500 से अधिक मूल्य वाले वस्त्रों पर 18% GST दर घरेलू विनिर्माण इकाइयों के लिए एक बड़ा वित्तीय बोझ बन गई है।
जहाँ एक ओर विदेशी उत्पाद कम लागत पर आयात होकर बाजार में पहुँच रहे हैं, वहीं दूसरी ओर भारतीय निर्माताओं को टैक्स व अनुपालन के अतिरिक्त भार का सामना करना पड़ रहा है।
मुख्य प्रभाव
• उत्पादन लागत में असंतुलन: ऊँची GST दरों और महंगे कच्चे माल से स्थानीय उत्पादक वैश्विक बाजार में मूल्य प्रतिस्पर्धा खो रहे हैं।
• MSME इकाइयों पर दबाव: सीमित पूंजी वाली इकाइयाँ टैक्स भुगतान और रिफंड प्रक्रिया में फँस रही हैं, जिससे उनकी कार्यशील पूंजी पर भारी असर पड़ा है।
• रोज़गार अवसरों में कमी: उत्पादन घटने से बुनकरों, कारीगरों और छोटे व्यापारियों की आजीविका प्रभावित हो रही है।
• मूल्य असंतुलन: विदेशी सस्ते माल के मुकाबले भारतीय वस्त्र महंगे पड़ रहे हैं, जिससे घरेलू बिक्री घट रही है।
• लंबी अवधि का जोखिम: यही प्रवृत्ति जारी रही तो भारत की वस्त्र आत्मनिर्भरता और निर्यात संतुलन दोनों प्रभावित होंगे।
*FDI और बड़े रिटेल ब्रांड्स का असर*
Zudio, Style Up, Reliance Trends, Max, H&M, Zara जैसे बड़े रिटेल ब्रांड विदेशी सप्लाई चेन से आयातित उत्पादों को बढ़ावा दे रहे हैं।
इनकी कम-कीमत वॉल्यूम रणनीति के चलते स्थानीय MSME यूनिट्स की बिक्री और मुनाफ़ा लगातार घट रहा है।
CAIT का मानना है कि FDI का उद्देश्य घरेलू उत्पादन को सशक्त बनाना होना चाहिए
यदि उसका लाभ केवल विदेशी उत्पादों के विपणन तक सीमित रहा, तो यह ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की भावना के विपरीत होगा।
CAIT टेक्सटाइल एवं गारमेंट कमेटी का मानना है कि यह स्थिति नीतिगत समन्वय और कर ढाँचे के पुनर्संतुलन की मांग करती है।
राष्ट्रीय चेयरमैन चम्पालाल बोथरा ने कहा —
“हम चाहते हैं कि भारत का कपड़ा उद्योग खुली प्रतिस्पर्धा में भी सशक्त बने। इसके लिए आवश्यक है कि कर नीति, आयात नियंत्रण और MSME प्रोत्साहन एक-दूसरे के पूरक हों। सरकार को समय रहते ठोस कदम उठाने होंगे ताकि यह उद्योग अपने लाखों श्रमिकों और व्यापारियों के साथ फिर से गति पकड़ सके।”
CAIT सरकार से आग्रह करता है कि —
• ₹2,500 से अधिक मूल्य के कपड़ों पर GST दर की समीक्षा कर छुट 2500/- से 10000/- की जाए,
• सस्ते आयात पर नियंत्रण और निगरानी प्रणाली लागू की जाए,
• घरेलू विनिर्माण इकाइयों को उत्पादन आधारित प्रोत्साहन दिया जाए।
यह कदम न केवल लाखों परिवारों को रोज़गार सुरक्षा देगा बल्कि भारत की कपड़ा आत्मनिर्भरता को भी मज़बूती प्रदान करेगा — जो ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ की मूल भावना के अनुरूप है।
प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस