जीवन को क्रिकेट मैच की तरह देखें: नकारात्मकता को छोड़ें और पुरुषार्थ करें, समर्पित सागर
समर्पित सागर जी महाराज का प्रेरक प्रवचन: जीवन को टेस्ट मैच की तरह खेलें, नकारात्मकता छोड़ पुरुषार्थ अपनाएं
 
                                
बाड़मेर जैन श्री संघ सर्वमंगलमय वर्षावास २०२५ के अंतर्गत कुशल दर्शन दादावाड़ी पर्वत पाटिया में विराजित पू. पू. संयम सारथी शासन प्रभावक खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपीयूष सागर सूरीश्वर जी म. सा. के मंगल गीत के बाद, श्री समर्पित सागर जी म. सा. ने जीवन की निराशा और संघर्ष पर एक प्रेरणादायक प्रवचन दिया। उन्होंने जीवन की तुलना क्रिकेट से करते हुए कहा कि हमें जीवन को एकदिवसीय मैच (one-day match) नहीं, बल्कि एक टेस्ट मैच (test match) की तरह देखना चाहिए, जिसमें हार के बाद भी दूसरी पारी खेलने का मौका मिलता है।
पाप और पुण्य: झूले के समान
महाराज श्री ने कहा कि पाप और पुण्य झूले की तरह हैं। जब जीवन में पाप कर्म का उदय होता है, तो व्यक्ति अकेला महसूस करता है। जो लोग पहले साथ खड़े होकर हौसला बढ़ाते हैं, वे भी धीरे-धीरे दूर हो जाते हैं। इस निराशा में व्यक्ति के मन में नकारात्मक सोच और आत्महत्या के विचार पैदा होते हैं, लेकिन हमें समझना चाहिए कि आयुष्य के सामने किसी का जोर नहीं चलता।
प्रशिक्षण (Training) और तकनीक (Technique) का महत्व
महाराज श्री ने समझाया कि अगर किसी के जीवन में नकारात्मकता आई है, तो इसका कारण जीवन का अधूरा प्रशिक्षण है। जिस तरह एक खिलाड़ी को खेल में तकनीक की जरूरत होती है, उसी तरह जीवन में भी सही तकनीक और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है। हमें जीवन के हर सबक को पूरी तरह समझना होगा, नहीं तो हम बार-बार हारते रहेंगे।
कर्म और अंपायर (Umpire)
समर्पित सागर जी म. सा. ने कर्म को क्रिकेट मैच के अंपायर के समान बताया। उन्होंने कहा कि जिस तरह अंपायर के लिए कोई खिलाड़ी शत्रु या मित्र नहीं होता और वह मौन रहकर निष्पक्ष फैसला सुनाता है, उसी तरह कर्म भी बिना किसी भेदभाव के अपना काम करता है। कर्म का परिणाम स्वीकार करना और भुगतना ही पड़ता है, जैसे गजसुकुमार के जीवन में पूर्व भव के कर्मों का फल सिर पर अंगारों की सिगड़ी रखकर भुगतना पड़ा।
मन और शरीर (काया) का संतुलन
उन्होंने मन की तुलना क्रिकेट के विकेट से की और बेल को विचारों से जोड़ा। अगर मन में बुरे विचार आ भी जाएं, तो हमें उन्हें शरीर के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। महाराज श्री ने कहा कि आत्महत्या करने वाले व्यक्ति को संतों की बात सुननी चाहिए और जीवन को आगे बढ़ाने के लिए खुद को तैयार करना चाहिए। जिस तरह एक खिलाड़ी हेलमेट और ग्लव्स से खुद को बचाता है, उसी तरह हमें संकल्प, सत्वबल और समर्पण का विकास करना चाहिए।
निष्कर्ष
महाराज श्री ने अपने प्रवचन का सार यह कहते हुए दिया कि जीवन में कभी हार नहीं माननी चाहिए। पुरुषार्थ करने से बुरा समय भी चला जाता है और व्यक्ति वापस सफलता प्राप्त करता है। हमारे जीवन में संभावनाएं छिपी हैं, इसलिए हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। उन्होंने कहा कि तीर्थंकर परमात्मा हमारे कप्तान हैं और सद्गुरु उप-कप्तान (vice-captain) हैं। हमें पाप की ओर नहीं, बल्कि धर्म के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। सद्गुरु की प्रेरणा से ही व्यक्ति अपने जीवन को सही दिशा दे सकता है और परमात्मा की राह पर चल सकता है।
बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया कि आज श्री शास्वत सागर जी ने आठ कषाय पे अपने प्रवचन में बताया की  क्रोध मान माया लोभ इन कषायों को दमन, क्षमा, विनम्रता, सरलता और संतोष से जीता जा सकता है।
साथ ही कल अमरावती सकल संघ से 100 श्रावक श्राविका पालीताणा के पहाड़ की त्री दिवसीय पैदल संघ का मुहूर्त लेने  गाजे बाजे के साथ पधारेंगे। पालीताणा का ये संघ आचार्य श्री पीयूष सागर सूरीश्वर जी म .सा.की निश्रा में निकलेगा ।
संकलन 
चम्पालाल बोथरा सूरत 
 प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस
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