AC बस में आग, 20 यात्री जिंदा जले:15 लोग झुलसे; बचने के लिए चलती गाड़ी से कूदे लोग, जैसलमेर से जोधपुर जा रही थी

जैसलमेर बस कांड में क्या धमाका हुआ था? क्या बस में कोई विस्फोटक जैसे पटाखा आदि रखा था? एसी स्लीपर बस के दरवाजे क्यों नहीं खुले. ऐसे कई सवाल देशभर के लोगों के मन में हैं क्योंकि रोज रात हो या दिन लाखों लोग ऐसी स्लीपर बसों से यात्रा करते हैं. हर शख्स डर रहा है कि कहीं उसकी बस में कुछ गड़बड़ न हो.

AC बस में आग, 20 यात्री जिंदा जले:15 लोग झुलसे; बचने के लिए चलती गाड़ी से कूदे लोग, जैसलमेर से जोधपुर जा रही थी

जैसलमेर में चलती एसी बस में भीषण आग से 20 से अधिक यात्रियों की मौत होने की खबर आई है। सवार 57 यात्रियों में से कई ने बस से कूदकर जान बचाई, जबकि 19 गंभीर रूप से झुलस गए। घटना को लेकर पीएम मोदी की प्रतिक्रिया भी आई है।

दिवाली से पहले 50 से ज्यादा परिवारों पर दुखों का पहाड़ टूटा है. जैसलमेर की बस जलने का वीडियो भीतर से झकझोर देने वाला है. 20 लोगों का बस में फंसकर जिंदा जलना हृदयविदारक है. 16 लोग गंभीर रूप से झुलसे हैं. यह प्राइवेट बस जैसलमेर से जोधपुर जा रही थी जब 14 अक्टूबर को दोपहर बाद इसमें आग लग गई. दिन की रोशनी में आग धधकने लगी लेकिन कोई कुछ कर नहीं सका. हां, कुछ लोग वीडियो जरूर बना रहे थे. सड़क पर फायर चैंबर या कहें तंदूरी भट्टी की तरह आग ने सब कुछ जला दिया. कुछ विस्फोट की बातें हो रही हैं. सवाल यह है कि अक्सर स्लीपर बसों में आग क्यों लग जाती है? सेफ्टी के साथ खिलवाड़ कैसे हो जाता है और प्रशासन आंख बंद किए रहता है. यह घटना हर उस शख्स के लिए चेतावनी है जो आए दिन स्लीपर बस में ट्रवेल करते हैं. 

यह बस केके ट्रेवल्स की थी. पांच दिन पहले ही इस रूट पर चलना शुरू हुई थी. इस AC बस को स्लीपर कोच में बदला गया था और अंदर कुछ ऐसा हुआ कि आग देखने के बाद भी लोग बाहर नहीं निकल सके. घटना को एक-एक करके समझने से साफ हो जाता है कि मंगलवार की दोपहर 3 बजे के करीब जैसलमेर-जोधपुर हाईवे पर क्या हुआ होगा

अचानक सड़क पर दौड़ रही बस से धुआं उठने लगा. अंदर या बाहर के लोग कुछ समझ पाते, आग की लपटों ने बस को चारों तरफ से घेर लिया. ड्राइवर ने बस रोकी लेकिन सेकेंडों में 50 से ज्यादा परिवारों की दुनिया उजड़ गई. 

 शुरुआती जानकारी के अनुसार बस को एसी स्लीपर कोच में कन्वर्ट किया गया था. इसकी बॉडी में फाइबर का इस्तेमाल हुआ था और जैसा आमतौर पर बसों में देखा जाता है रोशनी रोकने और वीआईपी फील देने के लिए खूब परदे लगाए गए थे. 

कुछ रिपोर्टों में यह भी दावा किया जा रहा है कि बस में आग पटाखों के विस्फोट के कारण लगी. वैसे, दिवाली के समय पटाखों की खेप इसी तरह से बस में किसी कार्टन में डालकर पहुंचाई जाती है. पुलिस इस एंगल पर भी जांच रही है.

खिड़कियां काफी मजबूत ग्लास की बनी थीं और अंदर इंटीरियर ऐसा था जो तेजी से आग पकड़ सकता था. ऐसे में आग तेजी से फैली और अंदर बैठी सवारियां तड़पती रहीं लेकिन कुछ कर ना सकीं. 

आसपास के लोगों ने बताया है कि बस पूरी तरह से भरी थी. कुछ लोग सीटों के बीच वाले संकरे रास्ते में भी थे. इससे हो सकता है कि भगदड़ की स्थिति में लोग फंस गए होंगे.  

आमतौर पर ऐसी स्लीपर गाड़ियों में दो गेट अनिवार्य होते हैं. एक गेट पीछे बनाया जाता है लेकिन लंबे रूट पर पैसे कमाने के चक्कर में बस के ड्राइवर और कंडक्टर जानबूझकर उस संकरे रास्ते को सामान से ब्लॉक कर देते हैं. इस केस में बताया जा रहा है कि इलेक्ट्रिकल वायरिंग जलने लगी थी और बाहर निकलने का एकमात्र दरवाजा ब्लॉक हो गया था.

कुछ यात्रियों की किस्मत अच्छी थी, वे खिड़की तोड़कर निकलने में कामयाब रहे. हालात क्या रहे होंगे, इसका अंदाजा आप ऐसे लगाइए कि पास के एक आर्मी स्टेशन से पहुंची जवानों की टीम को भी बस का गेट खोलने के लिए जेसीबी मशीन का इस्तेमाल करना पड़ा. 

बताया जा रहा है कि फायर ब्रिगेड घटनास्थल पर 45 मिनट के बाद पहुंची थी. कुछ लोग इस पर भी सवाल उठा रहे हैं. आग इतनी भीषण थी कि लोगों के शव पहचान में नहीं आ रहे हैं इसलिए डीएनए टेस्ट किया जा रहा है. 

 अधिकारियों ने एसी स्लीपर बस बनाने के लिए बदलाव को लेकर सुरक्षा मानकों की अनदेखी की ओर इशारा किया है. और ऐसा हर रूट पर होता है. 300 से 500 किमी तक जाने वाली एसी बसें लोगों को सुलाते हुए लेकर जाती हैं लेकिन यह डर हमेशा बना रहता है कि कहीं आग न लग जाए. 

 कुछ प्राइवेट बसे अवैध तरीके से भी संचालित की जाती हैं. बस अड्डे के टैक्स से बचने के लिए ये आसपास अपना अलग अड्डा बना लेते हैं. तमाम प्रचारित एप के जरिए ऐसी झालर वाली बसें बुकिंग लेती हैं और उस समय लोगों को पता नहीं रहता कि ये कैसी बस है.