बाड़मेर जैन श्रीसंघ सूरत में नंदीश्वर द्वीप की भव्य रचना: आचार्यश्री ने भावों से जोड़ा पूरा संघ

आचार्यश्री का संदेश: जिनभक्ति की ओर बढ़ता कदम

सूरत: बाड़मेर जैन श्रीसंघ के वर्षावास के दौरान परम पूज्य खरतरगच्छाचार्य श्री जिनपीयूषसागर सूरिश्वरजी महाराज साहेब के सान्निध्य में एक अद्भुत और धार्मिक आयोजन हुआ। आचार्यश्री ने अपने हाथों से नंदीश्वर द्वीप की एक सुंदर और भव्य प्रतिकृति का निर्माण करवाया, जिसका उद्घाटन संघ के सभी सदस्यों की उपस्थिति में किया गया।

जैन धर्म के अनुसार, नंदीश्वर द्वीप मध्य लोक में स्थित एक पवित्र स्थान है, जिसे स्वयं देवगण भी पूजते हैं। इस द्वीप पर कुल 52 जिनालय हैं, और हर जिनालय में 24 तीर्थंकरों की प्रतिमाएं विराजमान हैं। शास्त्रों के मुताबिक, केवल देवों के लिए ही इस द्वीप के दर्शन संभव हैं, लेकिन इसकी प्रतिकृति बनाकर हम भी देवों की तरह पूजा-अर्चना करके अनंत पुण्य कमा सकते हैं।

आचार्यश्री ने कहा, "नंदीश्वर द्वीप की यह रचना सिर्फ एक मूर्ति या ढाँचा नहीं है, बल्कि यह हमारी आत्मा को धर्म की ओर मोड़ने और जिनभक्ति में स्थिर करने का एक साधन है।" इस रचना के उद्घाटन के बाद, सभी श्रावक-श्राविकाओं में खुशी और श्रद्धा का माहौल छा गया।

साधार्मिक भक्ति का महत्व और पर्युषण पर्व की शिक्षा

इस अवसर पर, मुनि श्री शाश्वत सागर जी ने साधार्मिक भक्ति के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि साधार्मिक भाइयों की सेवा, मदद और सम्मान जैन धर्म की एक अनूठी परंपरा है। उन्होंने जिनदास श्रावक और सोमचंद सेठ की कहानियों का उदाहरण देते हुए बताया कि साधार्मिक की निंदा करना पाप है, जबकि उनकी मदद करने से अपार पुण्य मिलता है। इसी भावना से प्रेरित होकर खरतरवसई टुंक का निर्माण हुआ था।

आज पर्युषण महापर्व के दूसरे दिन, समर्पित सागर जी महाराज साहेब ने भी प्रवचन दिए। उन्होंने बताया कि पर्युषण का पर्व आत्मध्यान और राग-द्वेष को त्यागने का अवसर है। उन्होंने धर्म की तुलना नीम से करते हुए कहा कि भले ही वह शुरुआत में कठिन लगे, लेकिन उसका परिणाम आत्मा को शांति और शक्ति प्रदान करता है।

बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया की आज सोमचंद और सांवलचंद सेठ की साधार्मिक भक्ति की मार्मिक कहानी ने सभी उपस्थित श्रावकों में कैसे एक पत्र पर गिरे आँसू की एक बूँद को देखकर सोमचंद सेठ समझ गए कि उनका जैन भाई तकलीफ में है और उन्होंने तुरंत सवा लाख रुपए भेज दिए। बाद में, जब सांवलचंद ने ब्याज सहित पैसे लौटाने की कोशिश की, तो सोमचंद ने यह कहकर मना कर दिया कि उन्होंने यह साधार्मिक भक्ति के लिए किया था। में रुपया वापस नहीं ले सकता बाद में, दोनों ने मिलकर उन पैसों में और धन जोड़कर खरतरवसाही टुंक का निर्माण करवाया।

आज कल्पसूत्र (बारसा सूत्र) की बोलियां भी लगाई गईं। लाभार्थी परिवार श्री सुरेश जी हालोवाला परिवार कल ढोल-ढमाके के साथ आचार्यश्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वरजी को कल्पसूत्र वोहराएंगे, जिसके बाद परमात्मा की जिनवाणी के प्रवचन शुरू होंगे।

संकलन: चम्पालाल बोथरा, सूरत

संपर्क: 9426157835