भोपाल में ऐतिहासिक 'मनुवादी संघी फासीवाद विरोधी जन सम्मेलन' संपन्न: संविधान और लोकतंत्र की रक्षा का संकल्प
इतिहासकार डॉ. रतनलाल, डॉ. जितेंद्र मीणा, नेता बुद्धसेन पटेल और एडवोकेट सैयद साज़िद अली—ने आदिवासी अधिकार, पिछड़े वर्गों के आरक्षण, अल्पसंख्यकों की सुरक्षा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली पर जोर दिया।
मूलचन्द मेधोनिया
भोपाल। लोकतान्त्रिक अधिकार मोर्चा (DRF), मध्यप्रदेश के नेतृत्व में एक दिवसीय ऐतिहासिक 'मनुवादी संघी फासीवाद विरोधी जन सम्मेलन' संपन्न हुआ। भोपाल के नार्मदीय भवन में जुटे किसानों, मजदूरों, दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों सहित लगभग 300 प्रगतिशील, जनवादी प्रतिनिधियों ने सर्वसम्मति से 'संविधान की रक्षा और फासीवाद को परास्त' करने का निर्णायक संघर्ष संकल्प लिया। कार्यक्रम का संचालन विजय कुमार और आभार सैयद जावेद अख्तर ने किया। सम्मेलन के दौरान क्रन्तिकारी सांस्कृतिक मंच (RCF) के साथियों ने क्रन्तिकारी जनगीतों की प्रस्तुति दी।
सम्मेलन में मुख्य वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि देश इस समय भाजपा/आरएसएस-कॉर्पोरेट फासीवाद की मजबूत गिरफ्त में है, जिसने सामाजिक विभाजन, कॉर्पोरेट लूट और संवैधानिक संस्थाओं के क्षरण को चरम पर पहुंचा दिया है। आज मनुवादी संघी फासीवाद से लड़ना वक्त की पुकार है।
इतिहासकार डॉ. रतनलाल (संस्थापक, अंबेडकरनामा) ने ऐतिहासिक संदर्भ प्रस्तुत करते हुए कहा कि, "आज की लड़ाई 1927 के महाड़ सत्याग्रह की वैचारिक निरंतरता है। मनुवादी ताकतों को परास्त किए बिना, भारत में समानता स्थापित नहीं हो सकती।"
राष्ट्र निर्माण में आदिवासी पुस्तक के लेखक और इतिहासकार डॉ. जितेंद्र मीणा ने आदिवासी अधिकारों पर बात करते हुए कहा, "आदिवासियों की जल-जंगल-जमीन को लूटा जा रहा है। गोंडवाना और भील प्रदेश की मांग अब केवल क्षेत्रीय नहीं, बल्कि संवैधानिक न्याय की मांग बन चुकी है।"
वरिष्ठ नेता बुद्धसेन पटेल ने सभी बहुजन ताकतों से एकजुट होने का आह्वान करते हुए कहा कि, "पिछड़े वर्गों को उनकी संख्या के अनुपात में 52% आरक्षण देना संवैधानिक अनिवार्यता है, जिसे सरकार टाल नहीं सकती।"
मानवाधिकार कार्यकर्ता और वरिष्ठ एडवोकेट सैयद साज़िद अली ने अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों की निंदा की और कहा कि, "ईवीएम हटाओ, मतपत्रों से चुनाव कराओ" की मांग लोकतंत्र को बचाने की पहली शर्त है।
सम्मेलन ने अपनी सभी प्रमुख मांगों और प्रस्तावों को शामिल करते हुए भारत की माननीय राष्ट्रपति महोदया को एक विस्तृत ज्ञापन (Memorandum) भी सौंपा, जिसमें संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए उनके तत्काल हस्तक्षेप की मांग की गई है।
सम्मेलन ने छह सूत्रीय 'न्याय संकल्प' पारित किया, जिसमें मौजूदा भाजपा/ आरएसएस की सरकार को चुनौती देने वाली निम्नलिखित प्रमुख मांगें शामिल हैं:
- आरक्षण और जातिगत जनगणना: तत्काल प्रभाव से जातिगत जनगणना कराई जाए और संख्या के अनुपात में आरक्षण लागू हो। पिछड़ा वर्ग को 52% आरक्षण दिया जाए, तथा EWS आरक्षण तुरंत रद्द किया जाए।
- लोकतांत्रिक प्रक्रिया की बहाली: EVM हटाकर मतपत्रों (बैलेट पेपर) से चुनाव कराया जाए और चुनाव आयोग की स्वायत्तता बहाल की जाए।
- कॉर्पोरेट लूट और निजीकरण पर रोक: सरकारी संपत्तियों का निजीकरण बंद हो, किसान विरोधी कृषि कानूनों को निरस्त कर MSP की कानूनी गारंटी दी जाए। आदिवासी-विरोधी वन अधिनियम वापस लिए जाएँ।
- नाम बदलने की साजिश बंद हो: भोपाल का नाम बदलकर 'भोजपाल' करने की साज़िश तुरंत रोकी जाए। गोंड राजा भूपाल से जुड़ी भोपाल की विरासत और ऐतिहासिक-आदिवासी नामों का सांप्रदायिक दृष्टिकोण से विकृतीकरण बंद हो।
- शिक्षा और स्वास्थ्य: नई शिक्षा नीति वापस हो। केजी से पीजी तक मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित हो। स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण रोका जाए।
- महिला एवं अल्पसंख्यक अधिकार: महिलाओं के लिए 33% आरक्षण तुरंत लागू हो। मॉब लिंचिंग पर रोक लगाने के लिए सख्त कानून बने और समान नागरिक संहिता (UCC) पर तत्काल रोक लगाई जाए।
लोकतान्त्रिक अधिकार मोर्चा के संयोजक मोनू यादव ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए घोषणा की कि यह सम्मेलन संघर्ष की रणभेरी है। 'आरएसएस फासीवाद के खिलाफ व्यापक, एकजुट और मज़बूत जन प्रतिरोध' खड़ा करने की निर्णायक शुरुआत आज से हो गई है। उन्होंने संविधान, लोकतांत्रिक मूल्यों और सामाजिक न्याय की रक्षा के लिए सभी जनवादी ताकतों से 'जनपथ से न्यायपथ' तक एकताबद्ध होकर संघर्ष तेज़ करने की पुरजोर अपील की।
प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस