सौंदर्य की अनासक्ति और प्रोत्साहन की शक्ति: आत्म-जागृति के दो मार्ग

संघ का संदेश: मोह त्याग और प्रेरणा से मिलेगा आत्म-कल्याण

सौंदर्य की अनासक्ति और प्रोत्साहन की शक्ति: आत्म-जागृति के दो मार्ग

राजा भर्तृहरि की कथा से आत्म-जागरण का संदेश

चम्पालाल बोथरा का वक्तव्य: जीवन में साधना और सकारात्मकता लाएं

सूरत: बाड़मेर जैन श्री संघ द्वारा आयोजित सर्वमंगलमय वर्षावास 2025 के तहत, कुशल दर्शन दादावाड़ी, पर्वत पाटिया में विराजित पूज्य आचार्यश्री जिनपियूषसागर सूरीश्वरजी म.सा. ससंघ के आध्यात्मिक प्रवचनों ने श्रद्धालुओं को आत्मबोध, आत्मकल्याण और सद् आचरण के पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। इस दौरान, पूज्य शाश्वतसागरजी म.सा. और समर्पितसागरजी म.सा. ने अपने संदेशों से सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

आसक्ति का त्याग ही सच्चा वैराग्य

अपने प्रवचन में पूज्य शाश्वतसागरजी म.सा. ने सौंदर्य की आसक्ति से सावधान रहने का उपदेश दिया। उन्होंने एक कहानी में बताया की राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला से बहुत प्रेम करते थे। एक दिन, राजा को एक साधु से अमर फल मिलता है, जिसे खाने से व्यक्ति अमर हो जाता है। राजा वह फल अपनी पत्नी पिंगला को देते हैं, लेकिन पिंगला वह फल एक महावत को दे देती है, जो उस पर मोहित थी। महावत उस फल को एक वेश्या को देता है, और वेश्या अंततः वह फल राजा को वापस कर देती है। इस घटना से राजा को अपनी पत्नी के धोखे का पता चलता है, तब राजा को यह एहसास हुआ कि भोग और आकर्षण मनुष्य को विवेकहीन बना देते हैं। इस घटना के बाद, राजा ने भोगों का त्याग कर मुनिव्रत धारण किया।

पूज्य श्री ने प्रश्न किया, "राजा भर्तृहरि तो जाग गए… पर क्या हम जागे?"। उन्होंने आगे कहा कि उत्तम पुरुष, जिनवाणी से प्रेरणा लेकर आत्ममार्ग पर बढ़ते हैं, जबकि मध्यम पुरुष दूसरों के अनुभवों से सीखते हैं। जड़ पुरुष सत्य जानकर भी खुद में कोई परिवर्तन नहीं करते। उन्होंने सभी से यह चिंतन करने को कहा कि क्या हम बदलाव के लिए पुरुषार्थ कर रहे हैं या केवल जीवन जी रहे हैं।

प्रोत्साहन की शक्ति: आत्मकल्याण की सीढ़ी

पूज्य समर्पितसागरजी म.सा. ने अपने संदेश में प्रोत्साहन की ऊर्जा को आत्मकल्याण की सीढ़ी बताया। उन्होंने आचार्य हेमचंद्रसूरी जी म.सा. और उनकी माताजी के संवाद का स्मरण कराया, जिसमें माताजी ने अंतिम क्षण तक श्री हेमचंद्र सूरी जी के आत्मकल्याण की चिंता की। यह उदाहरण सिखाता है कि सच्चा साधक अंतिम श्वास तक आत्मोत्थान की सोच में रहता है।

उन्होंने बताया कि सच्चा सद्गुरु (Sadguru) वह होता है जो H-Help (मदद) करता है, E-Encourage (प्रोत्साहित) करता है, L-Lead (मार्गदर्शन) करता है और P-Promote (आगे बढ़ने में मदद) करता है। कश्मीरी शॉल वाली कथा का उदाहरण दिया, जिसमें एक संत के प्रेम और प्रोत्साहन ने एक चोर को डाकू से संत बना दिया। प्रोत्साहन और करुणा की भावना किसी का भी जीवन बदल सकती है।

इस अवसर पर, पूज्य खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वर जी म.सा. ने अपने मधुर कंठ से एक भजन गाकर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया।

गीत के कुछ अंश:

> चंद दिनों का जीना रे बंदे, ये दुनिया मकड़ी का जाला,

> क्यों डूबा विषयों में पगले, हाल हुआ तेरा बेहाला।

> आखिर होगा तेरा जाना, कोई न साथ निभायेगा।

> तेरे कर्मों का फल बंदे, साथ तुम्हारे जाएगा।

> धन-दौलत से-२, भरा खजाना, पड़ा यहीं रह जाएगा॥१॥

संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया कि पूज्य शाश्वतसागरजी म.सा. ने आसक्ति को तोड़ने का मार्ग दिखाया, वहीं पूज्य समर्पितसागरजी म.सा. ने प्रोत्साहन के माध्यम से आत्म-जागृति की राह दिखाई। उन्होंने कहा, "जब हम मोह तोड़ें और प्रोत्साहन से जुड़ें, तभी हम आत्मकल्याण की ओर अग्रसर हो सकते हैं।" समाज को आज ऐसे सद्गुरु के वचनों से प्रेरित होकर सजग, सकारात्मक और साधना-प्रधान जीवन जीने की आवश्यकता है।

संकलन: चम्पालाल बोथरा, सूरत (9426157835)