सहकारिता में अफसरशाही की मनमानी उजागर : घाटा दिखाकर कर्मचारियों का बोनस हड़पा, कानून की खुलेआम अवहेलना
भोपाल स्थित मध्यप्रदेश राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ (प्रियदर्शिनी, टीटी नगर) में सहकारिता विभाग के अफसरों पर मनमानी का आरोप लगा है। संस्था को कागजों में घाटे में दिखाकर करीब दो दर्जन नियमित कर्मचारियों को उनके वैधानिक बोनस से वंचित किया गया, जबकि उसी संस्था के श्रमिकों को बोनस दिया गया। कर्मचारियों को 35% महंगाई भत्ता दिए जाने के बावजूद बोनस न देना प्रबंधन की दोहरी और भेदभावपूर्ण नीति को उजागर करता है
कागजी घाटे की आड़ में बोनस से वंचित कर्मचारी, डीए भुगतान से उजागर हुआ दोहरा मापदंड
भोपाल। मध्यप्रदेश राज्य सहकारी उपभोक्ता संघ मर्यादित (प्रियदर्शिनी, टीटी नगर) में सहकारिता विभाग के अफसरों की मनमानी एक बार फिर सामने आई है। संस्था को कागजों में घाटे में दिखाकर लगभग दो दर्जन नियमित कर्मचारियों को बोनस के वैधानिक अधिकार से वंचित कर दिया गया, जबकि उसी संस्था में कार्यरत श्रमिकों को बोनस दिया गया। यही नहीं, नियमित कर्मचारियों को 35 प्रतिशत महंगाई भत्ता (डीए) देने के बावजूद बोनस न देना, प्रबंधन की दोहरी और भेदभावपूर्ण नीति को उजागर करता है।
घाटा बताकर अधिकारों पर डाका :
अफसरों ने संस्था के घाटे का हवाला देकर कर्मचारियों को बोनस देने से इनकार किया, जबकि वास्तविकता यह है कि कर्मचारियों को डीए का भुगतान किया जा रहा है। यदि संस्था इतनी घाटे में है कि बोनस नहीं दिया जा सकता, तो फिर डीए भुगतान कैसे किया गया? यह सवाल अफसरों की मंशा पर गंभीर संदेह खड़े करता है।
कानून साफ, फिर भी अनदेखी :
पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट, 1965 के तहत जिन कर्मचारियों का मासिक वेतन 21 हजार रुपये या उससे कम है और जिन्होंने न्यूनतम 30 दिन कार्य किया है, उन्हें 8.33 प्रतिशत से 20 प्रतिशत तक बोनस देना अनिवार्य है। त्योहारी सीजन में बोनस रोकना न केवल अमानवीय है, बल्कि कानून का सीधा उल्लंघन भी है। नियम यह भी कहता है कि बिना लिखित नोटिस और कर्मचारी को जवाब देने का अवसर दिए वेतन या लाभों में कटौती नहीं की जा सकती।
चयनात्मक लाभ, खुला भेदभाव :
संस्था में श्रमिकों को बोनस दिया जाना और नियमित कर्मचारियों को इससे वंचित रखना यह दर्शाता है कि नियमों की व्याख्या सुविधा अनुसार की जा रही है। यह चयनात्मक निर्णय प्रशासनिक तानाशाही का उदाहरण है, जहां अफसर अपनी मनमर्जी से तय कर रहे हैं कि किसे कानून का लाभ मिलेगा और किसे नहीं।
कर्मचारियों में रोष, कार्रवाई की मांग :
पीड़ित कर्मचारियों में भारी आक्रोश है। उनका कहना है कि अफसरों की मनमानी ने उनकी आर्थिक स्थिति और मानसिक संतुलन दोनों को प्रभावित किया है। कर्मचारियों ने सहकारिता विभाग के उच्च अधिकारियों और शासन से मामले की निष्पक्ष जांच कर दोषी अफसरों पर सख्त कार्रवाई और लंबित बोनस तत्काल दिलाने की मांग की है।
सवालों के घेरे में अफसरशाही :
यह पूरा मामला सहकारिता में पारदर्शिता और जवाबदेही पर बड़ा सवाल खड़ा करता है। क्या कानून सिर्फ कागजों तक सीमित है? या फिर अफसरों की मनमानी के आगे कर्मचारियों के अधिकार बौने पड़ गए हैं? यदि समय रहते इस अन्याय पर रोक नहीं लगी, तो सहकारिता संस्थाओं में कर्मचारियों का भरोसा पूरी तरह टूट जाएगा।
प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस