ऐड गुरु पीयूष पांडेय का निधन, 'अबकी बार मोदी सरकार' का नारा भी उन्होंने दिया था :'हमारा बजाज', 'कुछ खास है जिंदगी में' और 'ठंडा मतलब कोका कोला' से मशहूर हुए
लंबे समय तक भारत की विविधता में एकता को दिखाने वाले गीत 'मिले सुर मेरा तुम्हारा' के लेखक भी वही थे। यह गाना तो दूरदर्शन का थीम सॉन्ग बन गया था। फिर इंटरनेट के प्रसार होने पर लोग यूट्यूब आदि पर जाकर भी इस गीत को सुनते रहे।
भारतीय एडवरटाइजमेंट इंडस्ट्री में मशहूर पीयूष पांडे का 70 साल की उम्र में गुरुवार को निधन हो गया है। 'अब की बार मोदी सरकार' जैसे कई मशहूर नारे उन्होंने ही दिए थे।
भारत के विज्ञापन जगत की सबसे प्रभावशाली शख्सियतों में से एक पीयूष पांडे का मुंबई में 70 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने भारतीय विज्ञापन को न केवल पहचान दिलाई, बल्कि उसे भावनाओं से जोड़ा।
“अबकी बार मोदी सरकार”, “फेविकॉल का जोड़”, “ठंडा मतलब कोका-कोला” और “हमारा बजाज” जैसे प्रतिष्ठित विज्ञापन अभियानों के पीछे उन्हीं की रचनात्मक सोच थी। ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’ गीत भी उनकी कलम की देन था, जिसने भारत की एकता और विविधता को नई आवाज दी।
एडवरटाइजमेंट को दिए चार दशक
उन्होंने एडवरटाइजमेंट एजेंसी ओगिल्वी इंडिया में चार दशक से ज्यादा समय बिताया है। पीयूष पांडे साल 1982 में ओगिल्वी में शामिल हुए थे। इससे पहले वह क्रिकेट में हाथ आजमा चुके थे। उन्होंने 27 साल की उम्र में एडवरटाइजमेंट इंडस्ट्री में कदम रखा और चार दशक में इंडस्ट्री को पूरी तरह से बदल दिया। उन्होंने एशियन पेंट्स के लिए 'हर खुशी में रंग लाए' , कैडबरी के लिए 'कुछ खास है' कैंपेन तैयार किया था। इसके साथ ही उन्होंने फेविकोल और हच जैसे ब्रांड्स के लिए भी एडवरटाइजमेंट बनाए हैं। उन्होंने ही 'अब की बार, मोदी सरकार' का नारा दिया था।
1955 में जयपुर में हुआ था जन्म
पीयूष पांडे का जन्म 1955 में जयपुर में हुआ था। पीयूष पांडे के भाई प्रसून पांडे जाने माने डायरेक्टर और बहन इला अरुण सिंगर और एक्ट्रेस हैं। पीयूष पांडे के पिता एक बैंक में नौकरी करते थे। पीयूष ने कई साल क्रिकेट भी खेला।
पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार के प्रचार का नारा भी उन्होंने दिया था, जो काफी चर्चित रहा। यह नारा था- अबकी बार, मोदी सरकार। पीयूष पांडेय को भारत की विज्ञापन इंडस्ट्री में बड़े बदलाव लाने के लिए जाना जाता है। उन्होंने नामी ऐड कंपनी ओगिल्वी इंडिया के साथ करीब 4 दशकों तक काम किया था। यह कंपनी देश में ऐडवर्टाइजमेंट की दुनिया का पर्याय बनी रही और इसमें अहम भूमिका पीयूष पांडेय की भी मानी जाती है। उनकी निधन के साथ ही विज्ञापन की दुनिया का एक युग समाप्त हो गया है। उनकी शानदार मूंछें और हंसमुख चेहरा हमेशा याद किया जाएगा।
उन्हें भारतीय समाज की भाषा, परंपरा की गहरी समझ थी। यही कारण था कि उनके कई कैंपेन तो ऐसे थे, जो लोगों के दिलों को छू गए। प्रोडक्ट लोकप्रिय हुए तो उनके बनाए विज्ञापनों ने भी खूब चर्चा बटोरी और लोग पूरी दिलचस्पी से विज्ञापन देखते रहे। पीयूष पांडेय ने 1982 में ओगिल्वी इंडिया को जॉइन किया था। इससे पहले वह एक क्रिकेटर रहे थे। इसके अलावा चाय बागान में उन्होंने काम किया था और निर्माण क्षेत्र में भी काम कर चुके थे। उन्होंने 27 साल की उम्र में इस इंडस्ट्री में एंट्री ली और अंग्रेजी भाषा के प्रभुत्व वाली विज्ञापन की दुनिया का कलेवर ही बदल डाला। एशियन पेंट्स, कैडबरी समेत कई कंपनियों के कैंपेन्स को उन्होंने नई ऊंचाइयां दी थीं।
हर ब्रांड में बसती थी उनकी रचनात्मकता
विज्ञापन की दुनिया में पीयूष पांडे ने ऐसे कैंपेन बनाए जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं।
एशियन पेंट्स का स्लोगन “हर खुशी में रंग लाए”,
कैडबरी का ऐड “कुछ खास है जिंदगी में”,
फेविकोल का अटूट जोड़ और
हच का प्यारा डॉग — ये सभी उनके दिमाग की उपज थे।
उनके विज्ञापनों में भारतीयता की झलक, सादगी और भावनाओं का सुंदर मेल होता था।
चार दशक ओगिल्वी इंडिया के साथ
पीयूष पांडे ने अपने करियर की शुरुआत 1982 में Ogilvy India से की थी और चार दशक से अधिक समय तक वहीं जुड़े रहे। वे एजेंसी के चेयरमैन और चीफ क्रिएटिव ऑफिसर भी बने।
उनसे पहले अंग्रेज़ी का वर्चस्व रखने वाली विज्ञापन दुनिया में उन्होंने हिंदी और भारतीय भावनाओं को सम्मान दिलाया।
क्रिकेटर से बना ऐड गुरु
1955 में जयपुर में जन्मे पीयूष पांडे नौ भाई-बहनों में से एक थे। उनके भाई प्रसून पांडे एक प्रसिद्ध डायरेक्टर हैं, जबकि बहन ईला अरुण जानी-मानी सिंगर और एक्ट्रेस हैं।
विज्ञापन की दुनिया में कदम रखने से पहले पीयूष कुछ समय क्रिकेटर, चाय चखने वाले और निर्माण मजदूर के रूप में काम कर चुके थे।
दोस्तों और प्रशंसकों ने जताया शोक
उनके निधन पर सोशल मीडिया पर शोक की लहर है। ऐडमैन सुहेल सेठ ने अपने एक्स (X) अकाउंट पर लिखा, “भारत ने एक महान विज्ञापन जगत की हस्ती ही नहीं, बल्कि एक सच्चे देशभक्त को खो दिया। अब जन्नत में भी गूंजेगा ‘मिले सुर मेरा तुम्हारा’।”
भारतीय विज्ञापन को दी नई पहचान
पीयूष पांडे ने यह साबित किया कि सादे शब्दों में भी गहराई और असर हो सकता है। उन्होंने भारतीय संस्कृति, भावना और जुड़ाव को विज्ञापन की भाषा में ढाला। उनके जाने से भारतीय क्रिएटिव इंडस्ट्री में एक युग का अंत हो गया है।
प्रखर न्यूज़ व्यूज एक्सप्रेस