नेशनल ग्रीन ट्रेब्यूनल का कानून बहुत कमजोर हैः पूर्व न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल 

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और एनजीटी के पूर्व सदस्य जस्टिस सुधीर अग्रवाल ने कहा कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) का कानून बेहद कमजोर है, इसी वजह से वह अतिक्रमण और प्रदूषण रोकने में प्रभावी नहीं हो पा रहा। एनजीटी आदेश तो दे सकता है, लेकिन उन्हें लागू कराने की कानूनी ताकत उसके पास नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकारी अधिकारी ही अक्सर दोषी होते हैं, इसलिए वे एनजीटी को सशक्त नहीं बनाना चाहते

नेशनल ग्रीन ट्रेब्यूनल का कानून बहुत कमजोर हैः पूर्व न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल 

राम मंदिर पर निर्णय देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस से साक्षात्कार...। 

 एनजीटी का कानून कमजोर, आदेश लागू कराने की शक्ति नहीं

(विकास शर्मा) भोपाल: भारत में तेजी से कम होती हरियाली और तलाब, नदी व झीलों में बढ़ते अतिक्रमण पर सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश सुधीर अग्रवाल ने गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि  सरकार और सरकारी अधिकारी चाहते ही नहीं हैं कि गंगा की सफाई हो और अतिक्रमण रुके। विकास के नाम पर कम हो रही हरियाली आने वाली पीढ़ी के लिए दुखदायी है। यह बात मध्यप्रदेश प्रेस क्लब के अलंकरण समारोह में बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए राम मंदिर पर निर्णय देने वाले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और एनजीटी के पूर्व सदस्य सुधीर अग्रवाल ने एक विशेष साक्षात्कार में कही।

एनजीटी अतिक्रमण रोकने में नाकामयाब क्यों है...

 सुधीर अग्रवाल नेशनल ग्रीन ट्रब्यूनल (एनजीटी) के पूर्व सदस्य भी रहें हैं।  उन्होंने कहा कि प्रदूषण रोकने के मामले में एनजीटी फेल इसलिए हैं, क्योंकि उनका कानून बहुत कमजोर है। एनजीटी फैसला दे सकता है, यह तो उसमें लिखा है, लेकिन उस फैसले को लागू करने के लिए जो कानून होने चाहिए वह नहीं हैं। जैसे अगर कोई एनजीटी का आदेश नहीं मानता तो, एनजीटी कुछ नहीं कर सकता है। अधिकांश मामलों में दोषी सरकारी अधिकारी होते हैं, तो वह इसे कानूनी रूप से सशक्त नहीं होने देना चाहते हैं।      

नेता और अधिकारियों के बच्चों का दाखिला सरकारी स्कूल में अनिर्वाय कर दें...

सरकारी स्कूल और अस्पतालों में पहले लोग जाते थे। अब नहीं जाते। अगर बच्चों को प्राइमरी एजूकेशन नहीं देंगे तो वह हायर एजुकेशन तक कैसे पहुंच पाएंगा। वह तो दौड़ से बाहर हो जाएगा। सरकारी स्कूल और हॉस्पिटल के हालात तभी सुधरेंगे जब नेता और अधिकारियों के बच्चों का दाखिला वहां अनिर्वाय कर दें। सरकारी अधिकारी के इलाज का खर्च तभी माफ करें, जब वह सरकारी अस्पताल में भर्ती हो। सरकारी नौकरी तो सभी को चाहिए, लेकिन सरकारी व्यवस्था नहीं चाहिए। प्राइमरी स्कूल में नहीं भेजेंगे, लेकिन आईआईटी और मेडिकल कालेज आपको सरकारी चाहिए। सरकारी नौकरी अगर पाते हैं, तो सरकारी व्यवस्था से पूरी तरह जुड़िए। 

हर राज्य में सुप्रीम कोर्ट की एक बैंच होने चाहिए...

 पूर्व न्यायाधीश का मानना है कि हर राज्य में सुप्रीम कोर्ट की एक बैंच होनी चाहिए। जैसे हाईकोर्ट की बैंचेस होती हैं। मध्यप्रदेश में तीन जगह हाईकोर्ट है। जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर। ऐसा हो जाएगा तो केस लंबे समय तक पेंडिंग नहीं रहेंगे। लोगों को पहुंचने में आसानी होगी, गरीबों का पैसा कम लागेगा। आने-जाने में बहुत पैसा खर्च होता है। गरीब आदमी के बस का नहीं है, सुप्रीम कोर्ट का मुकदमा लड़ना।