चंद्रशेखर आजाद जैसा साहसी, सहज और निष्कलंक चरित्र वाला व्यक्तित्व इतिहास में कोई दूसरा दिखाई नहीं देता – प्रो शर्मा
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना उज्जैन द्वारा लोकमान्य तिलक और चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर एक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई, जिसमें वक्ताओं ने दोनों स्वतंत्रता सेनानियों के राष्ट्र को दिए गए योगदान को याद किया। डॉ प्रभु चौधरी ने काकोरी कांड, असेम्बली बम कांड व आजाद की साहसिक भूमिका को रेखांकित किया, वहीं प्रो. शैलेंद्र शर्मा ने तिलक के स्वराज आंदोलन और जनजागरण को प्रेरणास्रोत बताया। संगोष्ठी में देशभक्ति से ओतप्रोत कविताएं, वक्तव्य और श्रद्धांजलि प्रस्तुत की गई। सभी वक्ताओं ने कहा कि ऐसे महापुरुषों से हमें प्रेरणा लेकर देशहित में समर्पण करना चाहिए।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में तिलक और आजाद का योगदान अविस्मरणीय है – डॉ चौधरी
लोकमान्य तिलक और चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन, वक्ताओं ने बताया अविस्मरणीय योगदान
Ujjain : महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक और चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर हुआ राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन
महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य तिलक और क्रांतिकारी भारत माता के सपूत चंद्रशेखर आजाद की जयंती पर प्रतिष्ठित संस्था राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, उज्जैन द्वारा राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। कार्यक्रम के प्रमुख वक्ता के रूप में संस्था के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री डॉ प्रभु चौधरी ने कहा कि मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के भाबरा में जन्मे महान क्रांतिकारी एवं अमर बलिदानी चंद्रशेखर आजाद का पूरा नाम चंद्रशेखर तिवारी था। सन् 1922 में असहयोग आन्दोलन को अचानक बन्द कर देने के कारण उनकी विचारधारा में बदलाव आया और वे क्रान्तिकारी गतिविधियों से जुड़ कर हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गये। इस संस्था के माध्यम से रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में उन्होंने 9 अगस्त 1925 को काकोरी काण्ड में योगदान देकर ब्रिटिश शासन को हिला कर रख दिया। उन्होंने सरदार भगतसिंह के साथ लाहौर में लाला लाजपत राय की मौत का बदला सॉण्डर्स की हत्या करके लिया और दिल्ली पहुँच कर असेम्बली बम काण्ड को अंजाम दिया। भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन में तिलक और आजाद का योगदान अविस्मरणीय है।
मुख्य अतिथि विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक प्रो शैलेंद्रकुमार शर्मा ने कहा कि ब्रिटिश शासन के दौरान लोकमान्य तिलक ने सर्वप्रथम पूर्ण स्वराज की आवाज़ उठाई। उन्होंने व्यापक जन जागरण के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव तथा शिवाजी उत्सव सप्ताह भर मनाना प्रारंभ किया, जो पूरे देश में प्रेरणादायी सिद्ध हुए। उन्होंने इन उत्सवों के माध्यम से जनता में देशप्रेम, स्वाभिमान और अंग्रेजों के अन्यायों के विरुद्ध संघर्ष का साहस जगाया। चन्द्रशेखर आजाद का नाम भारत के स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में अमिट है। उनके जैसा साहसी, सहज और निष्कलंक चरित्र वाला व्यक्तित्व इतिहास में कोई दूसरा दिखाई नहीं देता है।
राष्ट्रीय सचिव डॉ मुमताज पठान नांदेड़ ने कहा कि बाल गंगाधर तिलक एक कांतिकारी नेता के रूप में रहे। वे स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता थे। उनका नारा था, स्वराज्य मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं यह लेकर रहूंगा। उन्होंने केसरी, मराठा वृत पत्र का संपादन एवं प्रचुर लेखन किया| तिलक गणित के अध्यापक रहे। उन्होंने डेक्कन एज्युकेशन सोसायटी की स्थापना 1884 में की। महाराष्ट्र में सार्वजनिक गणेश उत्सव, शिवाजी जयंती को लोकप्रिय बनाया और हिंदू मुस्लिम एकता का प्रयास किया। अपने स्पष्ट विचारों के कारण उन्हें विद्रोही कहा जाने लगा। तीन नेताओं – लाल, बाल और पाल ने देश के लिए अविस्मरणीय कार्य किया। चन्द्रशेखर आजाद ने देश की आजादी में क्रांतिकारी के रूप में कई आंदोलन किए। नौजवानों को प्रेरित किया। सरकार के हाथ कभी नहीं आए स्वयं गोली खाकर आजाद हुए। उन्होंने कहा था, आजाद हूं आजाद रहूंगा। आजादी के मतवाले, सर पे कफन बांधे। चौड़ा सीना छाती ताने, तिरछी टोपी मूंछें ताने। आजादी की मशाल लिए, चला बांका आजाद होने। ऐसे वीर सपूत, सेनानी को कोटी कोटी नमन करती हूं।
राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता राष्ट्रीय मुख्य संयोजक सुवर्णा जाधव पुणे ने की। उन्होंने अनेक उदाहरणों के माध्यम से इन महान पुरुषों के राष्ट्रीय आंदोलन में किए गए बलिदान के संबंध में चर्चा की। राष्ट्रीय संरक्षक एवं विशिष्ट अतिथि श्री बृज किशोर शर्मा ने बताया कि महापुरुषों से हमें सीख लेना चाहिए कि देश सबसे बड़ा होता है हमें भी राष्ट्रीय हित में समर्पण की भावना रखना चाहिए।
राष्ट्रीय संयोजक श्री पदमचंद गांधी भोपाल ने अपने वक्तव्य के साथ कविता में चंद्रशेखर आजाद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का व्याख्यान किया। सीना गोरों का जिसने था छलनी किया। देश हित खुद ही माँ को ये तन दे दिया। छटपटाने लगे खूँ निकलने लगा, सिर में गोली कसी की कसी रह गईं मर मिटे चंद्रशेखर वतन के लिए, दिल में हसरत बसी की बसी रह गई। जो जहाँ पर सुना वो वहीं रो दिया, माँ ने अपना प्यारा सपूत खो दिया। शोक सागर में डूबा हुआ देश था, आजादी दिल में बसी की बसी रह गई।
राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ रश्मि चौबे ने कहा कि वीर योद्धा चंद्रशेखर आजाद जी का कहना था कि, हम आजाद है और आजाद ही रहेंगे। अंग्रेजों ने भी उनको ब्रेव हार्ट फाइटर कहा था।
संस्था की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ अलका नायक ने अपने संबोधन के साथ ही श्री आजाद के बारे में अपनी काव्य पंक्तियों के साथ अपनी बात रखी, मर मिटे चंद्रशेखर वतन के लिए, दिल में हसरत बसी की बसी रह गई। पार कर ना सकी गोली मस्तक कभी, खोपड़ी में फँसी की फँसी रह गई।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ संस्था की राष्ट्रीय मुख्य प्रवक्ता डॉ रश्मि चौबे ने सरस्वती वंदना से की एवं अतिथियों का परिचय करवाया। तत्पश्चात संस्था की राष्ट्रीय महासचिव डॉ शहनाज शेख ने अपनी प्रस्तावना में देश के दो प्रमुख क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद एवं लोकमान्य तिलक के बारे में संक्षिप्त परिचय देते हुए अपनी बात कही। संगोष्ठी में इस अवसर पर अनेक पदाधिकारी, साहित्यकार कवि आदि उपस्थित रहे।
संगोष्ठी का संचालन राष्ट्रीय सचिव डॉ मुमताज पठान पुणे ने एवं धन्यवाद ज्ञापन राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की सचिव श्रीमती श्वेता मिश्रा ने किया।