देश आजाद कराने में दलित वर्ग के वीर मनीराम अहिरवार जैसे महान क्रांतिकारी ने योगदान दिया जिन्हें सम्मान क्यों नहीं?
शहीद परिवार के द्वारा लम्बे समय से आवाज उठाई जा रहीं है। सरकार और प्रशासन से निवेदन किया जा रहा है कि चीचली नगर के सम्मान से वंचित अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी को राष्ट्रीय शहीद का दर्जा प्रदान कर समूची बिरादरी एवं जिला नरसिंहपुर का सम्मान दिया जाये।

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लेखक: मूलचन्द मेंधोनिया (शहीद सुपौत्र)
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नरसिंहपुर जिला के चीचली शहीद नगरी के स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन पर विशेष 23 अगस्त
देश में जब अंग्रेजों का शासन था तब अन्याय अत्याचार की घटना हो रही थी। भेदभाव भी किया जा रहा था। बहरहाल अंग्रेजों का शासन गुलामी करने से जाने लगा। देशवासियों द्वारा विरोध किया जाने लगा था। अंग्रेजों के लिए देश से बाहर किया जाये क्योंकि वह विदेशी है जो कि यहां पर हुकूमत कर रहे है।
महात्मा गॉंधी से लेकर सुभाषचंद्र बोस, भगतसिंह, खुदीराम इत्यादि देश भक्त अंग्रेजों के खिलाफ खडे़ हो गयें। लेकिन देश आजाद कराने में कोई भी वर्ग के महापुरुषों ने कुर्बानी न दी हो ऐसा सम्भव ही नहीं है। अनुसूचित जाति व जनजाति दलित पिछड़ा व अल्पसंख्यक वर्ग के अनेकों महान क्रांतिकारी देश आजादी के महा आंदोलन में अपनी जान की बाजी लगा दी जिनका योगदान सराहनीय है। जैसे कि सरदार ऊधम सिंह, विरसा मुण्डा, टडृया भील, मातादीन मेहतर, दुर्गावती, शंकर शाह, विजय शाह, बाबू जगजीवन राम जैसे महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में बहुत बड़ी भूमिका निभाई।
लेकिन इस देश में ही जातिवाद एक ऐसा नासूर है जो कि अपने कुल और अपने ही वर्ग को महत्व देता आ रहा है। तथा दलित पिछड़ा वर्ग के समाज के जो भी क्रांतिकारी रहे है उन्हें भेदभाव की दृष्टि से कमतर आंका गया।
मध्यप्रदेश के जिला नरसिंहपुर तहसील गाडरवारा में चीचली नामक गांव है। जहां पर गोंड राजा शंकर प्रताप सिंह जू देव के पिता ने चीचली नामक बस्ती बसाई। अपने साथ वह अहिरवार समाज के मेहनती और बफादार लोगों को लेकर चीचली आये। जहां पर उनका पूरे क्षेत्र में शासन रहा। नरसिंहपुर जिला पूरा का पूरा गोंड बिरासत और सभ्यता वाला जिला है। यहां पर गोंड राजा ही शासन करते आ रहें थे। गोंड राजमहल में सेवादार वीर बहादुर मनीराम अहिरवार जी गोंड राजमहल की सुरक्षा व देखभाल करते थे। चीचली राजा जब पढ़ने लिखने बाहर गयें। वह समय सन 1942 का वर्षा काल का था। गोंड राजमहल को सूना होने की जानकारी अंग्रेजों के लिए मिलतें ही उन्होंने गोंड राजमहल पर चढा़ई करने के उद्देश्य से 23 अगस्त 1942 को चीचली राजमहल को लुटने और कब्जा करने आ धमकें। वीर मनीराम गोंड राजमहल में ही थे। जैसे ही महल की सीढ़ियों से अंग्रेजों की फौज को देखकर वह महल के मैदान में आ गयें। वीर मनीराम ने सबसे पहले अंग्रेजों को आगे न बड़ने के लिए बोले कहा कि हमारे महल की ओर नहीं आ सकतें यदि नहीं मानें तो मुझसे लड़ना होगा।
अंग्रेजी सेना क्या जाने की वह क्या है वह तो कमर में गुफना, हाथ में गुलेल और ढ़ेरों पत्थर चलाने के अचूक निशानेबाज थे। ललकार वहीं शेर की तरह गांव के अंदर बस्ती से जुलूस आ रहा था। जिसमें मंशाराम जसाटी, बाबूलाल ताम्रकार, इनके नेत्तृत्व में युवाओं की टीम इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाते हुए आई सबने देखा कि मनीराम तो अकेले ही अंग्रेजों को ललकारते हुए अंग्रेजों से मुकाबला कर रहे है। अंग्रेजों ने पहले आसमान की और गोली चलाई ताकि जुलूस रुक सकें। मंशाराम जसाटी सबसे आगे चल रहे थे। जिनके सीने में अंग्रेजों की गोली लगीं और वह घटना स्थल पर ही शहीद हो गयें।
अंग्रेजों की यह घटना पर मनीराम ने अपना कमाल दिखाना चालू कर दिया। क्योंकि उनके साथी मंशाराम जसाटी की वीरोचित शहादत पर वह आगबबूला हो कर अंग्रेजों को चेंलिज दे दिया कि यदि मां का दूध पिला हो तो मेरे सीने पर गोली मारकर दिखाओं। एक तरफ अंग्रेजों की गोली तो दूसरी तरफ से बंदूक से भी खतरनाक गोफ, गुफना व गुलेल में पत्थर भर-भर मनीराम अंग्रेजों को घायल कर रहे थे।
अंग्रेजों को लहूलुहान कर दिया था चालाकी से मनीराम अहिरवार के सीने में फिर गोली चलाई गई वह तो अखाड़े के उस्ताद थे वह स्वयं महल में लोगों को कुशती और दांवपेंच चलाना सीखते थे। गोली इतनी तेज आई की मनीराम तो कर्तव्य दिखाते हुए बच गये लेकिन वह गोली पास में खडी़ गौरा देवी कतिया को लगीं और वह भी मौके पर शहीद हो गई।
अंग्रेजों ने किसी भी तरह अपनी जान बचाने वह गांव छोड़ कर भाग गयें। मनीराम ने उन्हें खदेड़- खदेड़ कर मारा और अंग्रेजों पर युद्ध में विजय प्राप्त की। दूसरे दिन 24 अगस्त 1942 को क्रांतिकारीयों को गिरफ्तार करने हेतु सेना आई, मनीराम भूमिगत महल में हो गयें क्योंकि गोंड राजमहल की उनके ऊपर पूरी जबाबदारी थी। कुछ लोगों को गिरफ्तार कर अंग्रेज साथ ले गयें। मुखबिर के माध्यम से एवं धोकेबाजी से मनीराम अहिरवार को बगैर गिरफ्तारी रिकॉर्ड में न लेते हुए उन्हें अंग्रेज अपने साथ जबलपुर अपनी गुप्त जेल ले गयें। जहां पर राजमहल की गुप्त जानकारी लेने के लिए यातनाएं दी गई। उन्हें लालच भी दिया कि तुम दलित और आदिवासियों के लड़कों को हमारी सेना में भर्ती कराओं तुम्हारे लिए सरदार बना देगें। लेकिन वह तो सच्चे देशभक्त और स्वाभिमान योद्धा थे। अंग्रेजों की एक भी शर्त नहीं मानी अंग्रेजों ने उनको अपनी ही जेल में उन्हें दफन कर दिया। ऐसे महान क्रांतिकारी वीर मनीराम अहिरवार जी को आज तक सम्मान नहीं मिलना अफसोसजनक है।
शहीद परिवार के द्वारा लम्बे समय से आवाज उठाई जा रहीं है। सरकार और प्रशासन से निवेदन किया जा रहा है कि चीचली नगर के सम्मान से वंचित अमर शहीद वीर मनीराम अहिरवार जी को
राष्ट्रीय शहीद का दर्जा प्रदान कर समूची बिरादरी एवं जिला नरसिंहपुर का सम्मान दिया जाये।