आध्यात्मिक चिंतन:सदगुरु की महिमा और लोभ त्याग का संदेश समर्पित सागर
धर्मसभा में आत्म-चिंतन,सदगुरु की शरण और लोभ-मुक्त जीवन की प्रेरणा

समर्पित सागरजी म.सा. ने सद्गुरु की महिमा का किया बखान, शास्वतसागरजी म.सा. ने लोभ त्याग का दिया संदेश
Surat – बाड़मेर जैन श्री संघ द्वारा पर्वत पाटिया, सूरत स्थित कुशल दर्शन दादावाड़ी में आयोजित सर्वमंगलमय वर्षावास 2025 के अंतर्गत, आज प्रवचन गहन आध्यात्मिक चिंतन और आत्म-सुधार के संदेशों से परिपूर्ण था ।प.पू.छतीशगढ़ श्रृंगार, संयम सारथी, शासन प्रभावक ,खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वर जी म. सा. के शिष्य पूज्य समर्पित सागरजी म.सा. और पूज्य श्री शास्वतसागरजी म.सा. ने अपने प्रेरणादायी उद्बोधनों से उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को मंत्रमुग्ध कर दिया और उन्हें जीवन की सही दिशा की ओर प्रेरित किया।
पूज्य समर्पित सागरजी म.सा. द्वारा सद्गुरु की महत्ता का उद्बोधन
पूज्य समर्पित सागरजी म.सा. ने अपनी धर्मसभा में जीवन की पीड़ा, द्वंद्व और उनके समाधान पर आधारित एक सुंदर प्रेरक प्रसंग की चर्चा की इस में एक जिज्ञासु व्यक्ति ने पाप, ताप और शांति से संबंधित तीन जिज्ञासाएं प्रस्तुत कीं:
* "गंगा स्नान से पाप कटते हैं, पर मेरे नगर में गंगा नहीं बहती।"
* "चंदन से शरीर का ताप शीतल होता है, पर मेरे गांव के आस-पास चंदन नहीं है।"
* "चंद्रमा की चांदनी से शांति मिलती है, पर पूनम आज ही निकल चुकी है, अब एक महीना इंतजार करना होगा।"
इन जिज्ञासाओं के जवाब में संत ने स्पष्ट किया: "जब गंगा, चंदन, चांदनी न हों, तो जीवन की शांति और पापमुक्ति का एक ही मार्ग है – सदगुरु के चरणों में जाना। वही एकमात्र आश्रय है जो सभी कष्टों का समाधान है।" इस उत्तर ने जिज्ञासु के जीवन की दिशा बदल दी और वह सदगुरु की खोज में निकल पड़ा। पूज्य श्री ने बल देते हुए कहा, "जीवन में सदगुरु की प्राप्ति ही सबसे बड़ा सौभाग्य है। सदगुरु वह साधक होते हैं जो जीवन को दिशा देते हैं, आत्मा को कल्याण की ओर ले जाते हैं।"
उन्होंने 'दूध और जीवन का रहस्य' नामक प्रेरक दृष्टांत से संगति के महत्व को भी समझाया। उन्होंने बताया कि जिस प्रकार दूध विभिन्न पात्रों में जाकर अलग-अलग रूप लेता है – एसिड में ज़हर, नींबू में फटने, पानी में पतला और चीनी में केवल स्वाद – उसी प्रकार जब वह दही में मिलकर, मक्खन और अंततः घी बनता है, तो अपने चरम आत्मिक गुण में परिवर्तित हो जाता है। उन्होंने निष्कर्ष दिया, "सच्चा मूल्य वही पाता है जो स्वयं को सदगुरु के हाथों में सौंपता है। जिस प्रकार दूध दही बनकर अमूल्य घी बनता है, वैसे ही जीवन सद्गुरु की कृपा से आत्मकल्याण का साधन बनता है।"
पूज्य श्री शास्वतसागरजी म.सा. का लोभ और परिग्रह त्याग पर अपने प्रवचन में कहा की जीवन के मूल प्रश्न "परिग्रह, लोभ और आत्मकल्याण" पर उन्होंने अपने ओजस्वी वचनों से लोभ की असीमित प्रवृत्ति और उसके दुष्परिणामों पर प्रकाश डाला।
उन्होंने कहा, "लोभ की कोई मर्यादा नहीं होती, पर भोग की सीमा अवश्य होती है।" मनुष्य कितनी भी संपत्ति क्यों न अर्जित कर ले, उसके भोग की एक निश्चित सीमा होती है, जबकि लोभ कभी समाप्त नहीं होता। यह असंतोष का मूल कारण है और अंततः आत्मा को पतन की ओर ले जाता है। "लोभ सुख नहीं देता, यह दुख का कारण बनता है।" संपत्ति की आसक्ति आत्मा को सातवें नरक तक गिरा सकती है, जिसके लिए उन्होंने ममन सेठ का उदाहरण प्रस्तुत जिन्होंने लोभ के कारण अपना पुण्य खो दिया।
पूज्य श्री ने बताया कि "संपत्ति का संग्रह और लोभ – दूसरों के लिए दुःख का कारण बनते हैं।" लोभी व्यक्ति समाज को सुख नहीं दे सकता, क्योंकि वह स्वयं सुरक्षा, भोग और खोने की चिंता में सदैव दुखी रहता है। उन्होंने उपस्थितजनों से आत्म-चिंतन करने का आह्वान किया: "चिंतन कीजिए – जितना हम लोभ रखते हैं, उसका भोग कितना प्रतिशत कर पाते हैं?" उन्होंने पूनमचंद सेठ का उदाहरण दिया, जिन्होंने गुरु से परिग्रह ज्ञान प्राप्त कर अपनी सारी संपत्ति सात क्षेत्रों में दान कर दी और मात्र दो समय के भोजन की व्यवस्था रखी, जिससे वे "पुनिया श्रावक" के नाम से प्रसिद्ध हुए।
उन्होंने परिग्रह के तीन मुख्य दुखों पर भी प्रकाश डाला:
* प्राप्त करने की चिंता
* सुरक्षित रखने की चिंता
* उसका भोग पाने की लालसा
अंत में, उन्होंने भगवान महावीर के वचनों का सार प्रस्तुत करते हुए कहा, "शासन चतुर्विध संघ से चलता है, संपत्ति से नहीं।" भगवान महावीर ने कभी नहीं कहा कि लक्ष्मी से शासन चलेगा, बल्कि शासन त्यागियों से चलता है, भोगियों से नहीं। उन्होंने उन लोगों को भी सचेत किया जो लक्ष्मी का जोर देकर धर्म-शासन की बात करते हैं, क्योंकि वे भी अधर्म के मार्ग पर हैं। प्रत्येक श्रावक को अपने जीवन में "लोभ का त्याग, धर्म और आत्मकल्याण की साधना" की ओर प्रेरित होना चाहिए।
बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने बताया कि आज प.पू. साध्वी श्री प्रमोदिता श्री जी म.सा. के अवतरण दिवस की सभी ने बधाई दी और शुभकामनाएं प्रेषित की ।और धर्मसभा में उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं को आज के प्रवचन ने गहराई से आत्मचिंतन करने पर विवश कर दिया। सभी ने संकल्प लिया कि वे जीवन में सदगुरु के वचनों का अनुकरण कर आत्मिक प्रगति की ओर अग्रसर होंगे।
संकलन :-चम्पालाल बोथरा ,सूरत