पारस्परिक सद्भाव, अहिंसा और आत्मशुद्धि का प्रशिक्षण है ‘पर्युषण महापर्व’ — मुनि श्री शाश्वत सागर जी म.सा.

पर्युषण महापर्व का शुभारंभ

पारस्परिक सद्भाव, अहिंसा और आत्मशुद्धि का प्रशिक्षण है ‘पर्युषण महापर्व’  — मुनि श्री शाश्वत सागर जी म.सा.

बाड़मेर जैन श्री संघ द्वारा आयोजित सर्वमंगलमय वर्षावास के दौरान, पर्युषण महापर्व के प्रथम दिन का शुभारंभ खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूषसागर सूरीश्वर जी म.सा. के मंगलाचरण से हुआ। उन्होंने कहा कि जीवन में पर्व और पर्युषण बार-बार आते हैं, लेकिन जब तक आप साधना और आराधना को अपने जीवन का लक्ष्य नहीं बनाएंगे, तब तक आत्मा का कल्याण संभव नहीं है। उन्होंने जोर देकर कहा कि इन आठ दिनों में प्रसन्नता के साथ लक्ष्य तक पहुँचना आवश्यक है। जिस प्रकार एक व्यक्ति 50 मंजिल की इमारत पर चढ़ने के बाद यह पता चले कि चाबी नीचे रह गई है, तो उसके सारे प्रयास व्यर्थ हो जाते हैं, ठीक उसी तरह पर्युषण में हमें अपनी आत्मा को पहचानना चाहिए और लक्ष्य के साथ जुड़ना चाहिए।

मुनि श्री शाश्वत सागर जी ने अपने प्रवचन में पर्युषण महापर्व के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई में जाकर जीवन को पवित्र बनाने का साधन है। उन्होंने बताया कि पर्युषण का अर्थ है ‘आत्मा में निवास करना’। इस आठ दिवसीय महापर्व के दौरान, हम बाहर की आसक्तियों को त्यागकर भीतर की ओर यात्रा करते हैं। इस अवधि में कल्पसूत्र वाचन, अष्टान्हिका प्रवचन और आत्मचिंतन के माध्यम से आत्मा की शुद्धि का प्रयास किया जाता है।

मुनि श्री ने पर्युषण महापर्व के पाँच विशेष कर्तव्यों का उल्लेख किया, जो हमें आध्यात्मिकता और नैतिकता की ओर ले जाते हैं:

 * अमारी प्रवर्तन (अहिंसा की प्रतिष्ठा): हिंसा का पूर्ण त्याग करना और किसी भी प्राणी को कष्ट न देना। उन्होंने पंचकाय जीवों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, और वनस्पति) का उल्लेख करते हुए कहा कि मानव जीवन इन्हीं पर निर्भर है, इसलिए इनकी रक्षा करना ही अहिंसा का वास्तविक पालन है। उन्होंने राजा कुमारपाल और मुगल सम्राट अकबर का उदाहरण दिया, जिन्होंने आचार्य श्री जिनचंद्रसूरीजी के उपदेशों से अहिंसा को अपने राज्य में प्रतिष्ठित किया।

 * साधर्मिक भक्ति: स्वार्थ को त्यागकर साधर्मी भाइयों के प्रति सहयोग, संवेदना और समर्पण का भाव रखना। यह केवल आर्थिक सहयोग नहीं, बल्कि सद्भाव और आत्मीयता का तप भी है।

 * गुरु भक्ति: जिनशासन के आचार्य, साधु और साध्वियों के प्रति श्रद्धा रखना और उनके जीवन से संयम, त्याग तथा तप की प्रेरणा ग्रहण करना।

 * तप एवं आत्मसंयम: उपवास, एकासन, स्वाध्याय और सामायिक के माध्यम से आत्मा को पापों से मुक्त करना। यह शरीर को कष्ट देने की नहीं, बल्कि मन और आत्मा को शुद्ध करने की प्रक्रिया है।

 * क्षमा याचना (क्षमा पर्व): महापर्व का समापन ‘क्षमापना’ से होता है। ‘मिच्छामि दुक्कडम्’ कहकर हम एक-दूसरे से क्षमा मांगते और देते हैं, जिससे आपसी सद्भाव और सौहार्द बढ़ता है।

मुनि श्री ने जोर देकर कहा कि पर्युषण महापर्व एक आध्यात्मिक प्रशिक्षण केंद्र है, जहाँ हम इन पाँच कर्तव्यों का अभ्यास करते हैं ताकि वर्ष भर इनका पालन कर सकें।

मुनि समर्पित सागर जी ने बताया कि पर्युषण महापर्व आत्मा की साधना और शाश्वत आराधना का पर्व है। यह महापर्व केवल जैन समाज के लिए ही नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता के लिए आत्मशुद्धि, अहिंसा और आत्मविकास का संदेश लेकर आता है। उन्होंने भगवान महावीर द्वारा बताए गए तीन प्रकार के जीवों का भी जिक्र किया: संज्ञा प्रधान (भोग में लिप्त), प्रज्ञा प्रधान (विवेक से जीवन जीने वाले), और आज्ञा प्रधान (जिनवाणी के अनुसार चलने वाले)। पर्युषण इन्हीं जीवों के लिए मार्गदर्शन का प्रकाशस्तंभ है।

उन्होंने तीर्थ और पर्व के बीच का अंतर स्पष्ट करते हुए कहा कि जहाँ तीर्थयात्रा के लिए धन और साधन चाहिए, वहीं पर्व के लिए केवल शुद्ध भावना ही पर्याप्त है। तीर्थ अक्सर मौन होता है, लेकिन पर्व हमें प्रत्यक्ष प्रेरणा देता है।

नंदीश्वरद्वीप की भव्य रचना

आचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वर जी ने बताया कि देवगण भी इन आठ दिनों में नंदीश्वरद्वीप में जाकर जिनेंद्र भक्ति करते हैं। इस अवसर पर उपाश्रय में नंदीश्वर द्वीप की भव्य रचना की गई, जिसका उद्घाटन चतुर्विध संघ के साथ ढोल-धमाकों के साथ किया गया। इसके बाद, सभी श्रद्धालुओं ने दर्शन विधि के माध्यम से नंदीश्वर द्वीप के साथ अपनी भावनात्मक यात्रा को जोड़ा।

बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चंपालाल बोथरा ने अंत में कहा कि पर्वाधिराज पर्युषण हमें सिखाता है कि आत्मा का उत्थान ही जीवन का सच्चा लक्ष्य है। यह पर्व हमें जीव मैत्री, अहिंसा, क्षमा और शाश्वत जिनभक्ति की ओर अग्रसर करता है।

संकलन:चंपालाल बोथरा, सूरत