पर्युषण पर्व में भगवान महावीर के सिद्धांतों की प्रासंगिकता : चम्पालाल बोथरा 

पर्युषण पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानवता और विश्व-शांति का उत्सव है। यदि हम महावीर के इन जीवन दर्शन सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँ, तो न केवल व्यक्तिगत आत्मिक शांति मिलेगी, बल्कि संपूर्ण विश्व में शांति और सद्भावना स्थापित होगी।

पर्युषण पर्व में भगवान महावीर के सिद्धांतों की प्रासंगिकता : चम्पालाल बोथरा 

महावीर स्वामी का प्रमुख उपदेश था – “अहिंसा परमो धर्मः

सूरत :पर्युषण जैन धर्म का सबसे पावन पर्व है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि, संयम और क्षमा का उत्सव है। इस काल में जैन समाज के लोग आहार, व्यवहार और विचार में विशेष संयम का पालन करते हैं और आत्मचिंतन-आत्मावलोकन की साधना करते हैं।

भगवान महावीर के जीवन-दर्शन ही पर्युषण पर्व के मूल आधार हैं। आठ दिनों के दौरान इन्हीं सिद्धांतों का पठन और आतमसात किया जाता है।

1. अहिंसा – पर्युषण का प्राण तत्व:-

महावीर स्वामी का प्रमुख उपदेश था – “अहिंसा परमो धर्मः”।

   •   पर्युषण के समय जैन साधक जीव-दया का विशेष ध्यान रखते हैं।

   •   सूक्ष्म जीवों की रक्षा हेतु रात्रि भोजन त्याग, उबलता पानी पीना, हरी सब्ज़ियों का परहेज़ आदि नियम अपनाए जाते हैं।

   •   यह पर्व हमें सिखाता है कि हिंसा केवल बाहरी नहीं, बल्कि विचार और वाणी में भी हो सकती है। अतः पर्युषण आत्मा को शुद्ध करने के लिए मन-वचन-काय की अहिंसा का अभ्यास कराता है।

 आज के युग में जब हिंसा, युद्ध और आतंकवाद से मानवता त्रस्त है, अहिंसा ही स्थायी शांति का मार्ग है।

2. सत्य – आत्मचिंतन का मार्ग:-

महावीर स्वामी ने कहा – “सत्य आत्मा का आभूषण है”।

   •   पर्युषण पर्व में श्रद्धालु अपने आचरण की समीक्षा करते हैं और असत्य, छल-कपट से दूर रहने का संकल्प लेते हैं।

   •   सत्य का अभ्यास केवल बोलने में नहीं, बल्कि सोचने और जीने में होना चाहिए।

   •   प्रतिक्रमण और प्रायश्चित के माध्यम से व्यक्ति अपने असत्य आचरण का प्रायश्चित करता है।

 वर्तमान समय में जब भ्रष्टाचार और झूठ समाज को खोखला कर रहे हैं, सत्य ही सामाजिक विश्वास और नैतिकता की रीढ़ है।

3. अपरिग्रह – संयम और संतोष की साधना:-

महावीर स्वामी का अपरिग्रह सिद्धांत पर्युषण की आत्मा है।

   •   उपवास, संयम और तपस्या के द्वारा साधक भोग-विलास और अधिक उपभोग से दूर रहते हैं।

   •   पर्युषण हमें बताता है कि “मनुष्य की आवश्यकताएँ सीमित हैं, लेकिन इच्छाएँ असीमित”।

   •   अपरिग्रह का अभ्यास हमें संतुलित जीवन, संसाधनों का न्यायपूर्ण उपयोग और पर्यावरणीय स्थिरता की ओर ले जाता है।

 आज के उपभोक्तावादी युग में, अपरिग्रह ही मानसिक शांति और सामाजिक संतुलन का आधार है।

4. अनेकांतवाद – क्षमा और सहिष्णुता का संदेश:-

महावीर ने अनेकांतवाद द्वारा सिखाया कि सत्य के अनेक पहलू हो सकते हैं।

   •   पर्युषण का सबसे पवित्र क्षण है क्षमापना दिवस, जब हम “मिच्छामि दुक्कडम्” कहकर सबके प्रति क्षमा माँगते और क्षमा देते हैं।

   •   यह अनेकांतवाद का प्रत्यक्ष रूप है – मतभेदों को भूलकर आपसी भाईचारा और सहिष्णुता का अभ्यास।

 आज की दुनिया, जो विचारधाराओं और संस्कृतियों के टकराव से जूझ रही है, वहाँ अनेकांतवाद ही विविधता में एकता और संवाद का मार्ग है।

5. आत्मसंयम और करुणा आत्मविजय का साधन:-

महावीर ने कहा – “सबसे बड़ी विजय स्वयं पर विजय है”।

   •   पर्युषण पर्व आत्मसंयम का पर्व है।

   •   उपवास, प्रतिक्रमण, स्वाध्याय, तपस्या आदि साधनाओं द्वारा व्यक्ति अपनी इच्छाओं और वासनाओं पर नियंत्रण पाना सीखता है।

   •   साथ ही, करुणा और दया का अभ्यास करके सभी प्राणियों में आत्मा की समानता को स्वीकार करता है।

 यह आत्मविजय ही मानसिक शांति और आत्मिक शक्ति का सच्चा मार्ग है।

जैन समाज के चंपालाल बोथरा ने बताया की 

पर्युषण पर्व वस्तुतः भगवान महावीर स्वामी के सिद्धांतों का जीवंत अभ्यास है।

   •   अहिंसा हमें करुणा सिखाती है।

   •   सत्य हमें आत्मबल और विश्वास देता है।

   •   अपरिग्रह संतुलन और स्थिरता लाता है।

   •   अनेकांतवाद सहिष्णुता और क्षमा का मार्ग है।

   •   आत्मसंयम और करुणा हमें आत्मविजय का अनुभव कराते हैं।

यही कारण है कि पर्युषण पर्व केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मानवता और विश्व-शांति का उत्सव है। यदि हम महावीर के इन जीवन दर्शन सिद्धांतों को अपने जीवन में अपनाएँ, तो न केवल व्यक्तिगत आत्मिक शांति मिलेगी, बल्कि संपूर्ण विश्व में शांति और सद्भावना स्थापित होगी।

 वंदन है उन महावीर को, जिनकी शिक्षाएँ हर युग में अमर और मार्गदर्शक हैं।