सम्यक दर्शन और आत्मा का दिव्य तेज: मुनिवर समर्पित सागर जी का मंगल प्रवचन
आत्मा का वास्तविक स्वरूप – अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंत शक्ति

सम्यक दर्शन और आत्मा का दिव्य तेज: मुनिवर समर्पित सागर जी का मंगल प्रवचन
Surat,बाड़मेर जैन श्री संघ के सर्वमंगलमय वर्षावास कुशल दर्शन दादावाड़ी, पर्वत पाटिया, सूरत में खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वर जी म.सा. के शिष्य मुनिवर समर्पित सागर जी ने एक मंगल प्रवचन में बताया की
जीवन का सबसे बड़ा सत्य यही है कि मन और शरीर अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि शरीर पंचमहाभूतों से बना एक भौतिक साधन है, जबकि मन वासनाओं, कल्पनाओं और भावनाओं का सूक्ष्म केंद्र है। इन दोनों से परे आत्मा है, जो शुद्ध चेतना है। इसका वास्तविक स्वरूप अनंत ज्ञान, अनंत दर्शन, अनंत सुख और अनंत शक्ति है। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि मन और शरीर दोनों ही आत्मा के लिए सिर्फ साधन मात्र हैं, जिनका उपयोग धर्म-आराधना में करना चाहिए।
समर्पित सागर जी ने आठ घाती कर्मों का विस्तार से विवेचन किया, जो आत्मा के गुणों को ढक लेते हैं। ये कर्म हैं:
• ज्ञानावरणीय कर्म: जो ज्ञान को ढकता है।
• दर्शनावरणीय कर्म: जो दर्शन में बाधक है।
• वेदनीय कर्म: जो सुख-दुःख का अनुभव कराता है।
• मोहनीय कर्म: जो राग-द्वेष और मोह उत्पन्न करता है।
• आयु कर्म: जो जन्म-मरण का निर्धारण करता है।
• नाम कर्म: जो शरीर का रूप-स्वरूप तय करता है।
• गोत्र कर्म: जो कुल और समाज का स्तर निश्चित करता है।
• अंतराय कर्म: जो आत्मा की शक्ति में बाधा देता है।
उन्होंने समझाया कि जब तक ये कर्म आत्मा पर हावी रहते हैं, तब तक उसका दिव्य तेज प्रकट नहीं हो सकता। इन कर्मों से मुक्ति का मार्ग सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चारित्र को अपनाना है।
इस अवसर पर, राजनांदगांव (छत्तीसगढ़) से 100 से अधिक श्रद्धालुओं का एक बड़ा संघ आचार्य श्री के दर्शन-वंदन के लिए सूरत आया। संघ द्वारा उनका हार्दिक अभिनंदन और सम्मान किया गया ।
बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चम्पालाल बोथरा ने अपने व्यक्तव्य में कहा कि आत्मा का तेज प्रकट करने और मोक्ष का मार्ग खोलने के लिए हमें मोह, राग-द्वेष और आसक्ति को त्यागकर संयमित जीवन अपनाना चाहिए।
संकलन: चम्पालाल बोथरा, सूरत 9426157835