बाड़मेर जैन श्री संघ सूरत सर्वमंगलमय वर्षावास कुशल दर्शन दादावाड़ी में मुनिवर ने बताया – नींद और आलस्य से साधना में आती है बाधा
नींद और आलस्य से ऊपर उठकर साधना में लगें : मुनिवर समर्पित सागर जी म.सा.

आध्यात्मिक उन्नति के लिए नींद का संतुलन ज़रूरी : मुनिवर समर्पित सागर जी म.सा.
Surat,बाड़मेर जैन श्री संघ सूरत सर्वमंगलमय वर्षावास कुशल दर्शन दादावाड़ी में खरतरगच्छाचार्य श्री जिन पीयूष सागर सूरीश्वर जी म.सा. के शिष्य मुनिवर समर्पित सागर जी म.सा. ने प्रवचन में कहा कि मानव जीवन में नींद को लेकर दो तरह की समस्याएं हैं—कुछ लोग ज़्यादा नींद से परेशान हैं, तो कुछ को नींद न आने की समस्या है। लेकिन आत्मा की सच्ची उन्नति के लिए ज़रूरी है कि हम नींद के मोह से ऊपर उठकर उसे धर्म और अध्यात्म की साधना में बदलें।
मुनिवर ने जैन दर्शन के अनुसार बताया कि मोक्ष पाने के लिए आत्मा को आठ कर्मों का नाश करना होता है। इनमें से चार घाती कर्म—ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, मोहनीय और अंतराय—आत्मा की आज़ादी के रास्ते में सबसे बड़ी रुकावट हैं। इन कर्मों को हटाने के लिए ही धर्म-साधना की जाती है। खासकर दर्शनावरणीय कर्म आत्मा को बार-बार नींद और आलस्य की ओर धकेलता है।
समर्पित सागर जी ने दर्शनावरणीय कर्म के बारे में विस्तार से बताया। यह कर्म आत्मा की देखने और सही अनुभव करने की शक्ति को ढक देता है। इसके चार प्रकार होते हैं:
• चक्षु-दर्शनावरणीय: आँखों से देखने की शक्ति पर पर्दा डालता है।
• अचक्षु-दर्शनावरणीय: अन्य इंद्रियों की ग्रहण करने की शक्ति पर असर डालता है।
• अवधि-दर्शनावरणीय: अवधि-दर्शन (सीमित क्षेत्र और समय की अनुभूति) को रोकता है।
• केवल-दर्शनावरणीय: केवलज्ञान के साथ रहने वाले केवलदर्शन को ढक देता है।
उन्होंने कहा कि जब यह कर्म मज़बूत होता है, तो व्यक्ति गहरी नींद, आलस्य और मोह में फंस जाता है, जिससे उसकी जागरूकता कम हो जाती है और साधना में रुकावट आती है।
नींद और पुरुषार्थ का महत्व
मुनिवर ने समझाया कि जब दर्शनावरणीय कर्म का असर ज़्यादा होता है, तो व्यक्ति बार-बार सोता है। लेकिन जब इसका असर कम होता है, तो थोड़ी सी नींद से ही शरीर और मन तरोताज़ा हो जाते हैं। मुनिवर ने इस कर्म को खत्म करने के उपाय भी बताए। उन्होंने कहा कि हमें नींद का इस्तेमाल सांसारिक दुखों के बारे में सोचने की बजाय आध्यात्मिक ध्यान के लिए करना चाहिए। शरीर के प्रति मोह और लगाव को छोड़कर ख़ुशी और पुरुषार्थ के साथ साधना करनी चाहिए। सच्चे गुरु की शरण में जाने, शास्त्रों का अध्ययन करने, स्वाध्याय, ध्यान और संयम के ज़रिए इस कर्म को शांत और नष्ट किया जा सकता है।
अपने प्रवचन के अंत में समर्पित सागर जी ने कहा कि जीवन में नींद का सही संतुलन बहुत ज़रूरी है। न तो बहुत ज़्यादा सोना आत्मा के लिए अच्छा है और न ही बहुत कम सोना। सच्ची जागृति तभी है, जब आत्मा जागकर धर्म और साधना के रास्ते पर चले। उन्होंने कहा, "सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र ही मोक्ष का परम मार्ग है।"
बाड़मेर जैन श्री संघ के वरिष्ठ सदस्य चंपालाल बोथरा ने बताया कि आज के प्रवचन में मुनिवर समर्पित सागर जी म.सा. ने व्यक्ति के दर्शनावरणीय कर्म के बारे में विस्तार से बताया और समझाया कि यह कर्म किस तरह हमारी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक बनता है और किस तरह साधना के माध्यम से इसे दूर किया जा सकता है।
संकलन :-चंपालाल बोथरा सूरत